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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन २१५ नैरयिक होकर तिर्यंच हो जाता है, तिर्यंच होकर मनुष्य और मनुष्य होकर देव हो जाता है। यह अवस्था चक्र परिवर्तन होता रहता है। इस दृष्टि से जीव अशाश्वत है। जिस दृष्टि से जीव शाश्वत है उस दृष्टि से जीव अशाश्वत नहीं है। एक ही पदार्थ एक ही काल में शाश्वत और अशाश्वत दोनों विरोधी धर्मों का आधार है। सकम्प और निष्कम्प गौतम भन्ते ! जीव सकम्प है या निष्कम्प ? महावीर - गौतम ! जीव सकम्प भी है और निष्कम्प भी है। गौतम - इसका कारण क्या है ? महावीर - जीव संसारी और मुक्त रूप से दो प्रकार का है। जो मुक्त जीव हैं वे दो प्रकार के हैं - अनन्तरसिद्ध और परम्परसिद्ध परम्परसिद्ध तो निष्कम्प हैं और अनन्तरसिद्ध सकम् । - संसारी जीवों के भी दो प्रकार हैं- शैलेशी और अशैलेशी । शैलेशी जीव निष्कम्प होते हैं और अशैलेशी सकम्प होते हैं। - भगवती २५ / ४, सूत्र ३५-३६ सवीर्य और अवीर्य गौतम - जीव सवीर्य है या अवीर्य । महावीर - जीव सवीर्य भी है और अवीर्य भी है। गौतम - इसका क्या रहस्य है ? महावीर - जीव संसारी और मुक्त रूप से दो प्रकार के हैं। मुक्त तो अवीर्य है । संसारी जीव भी शैलेशी प्रतिपन्न और अशैलेशी प्रतिपन्न से दो प्रकार का है। शैलेशी प्रतिपन्न जीव लब्धिवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य है, किन्तु करण वीर्य की अपेक्षा से अवीर्य है; और अशैलेशी प्रतिपन्न जीव लब्धि वीर्य की अपेक्षा से सवीर्य है किन्तु करण वीर्य की अपेक्षा से सवीर्य भी है और अवीर्य भी है। जो जीव पराक्रम करते हैं वे करणवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य हैं और जो अपराक्रमी हैं वे करणवीर्य की अपेक्षा से अवीर्य हैं। - भगवती १/८/२७५-२७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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