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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २१३ महावीर-सोमिल ! मैं सरिसव को भक्ष्य भी मानता हूँ और अभक्ष्य भी। सोमिल-वह कैसे ?
महावीर-ब्राह्मण ग्रन्थों में “सरिसव" शब्द के दो अर्थ हैं एक सदृशवय और दूसरा सर्षप याने सरसों। इनमें से समानवय वाले (१) सहजात (२) सहवर्धित (३) सहप्रांशु क्रीडित। ये तीनों श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं और धान्यसरिसव जिसे सर्षप कहते हैं। उसके भी सचित्त-अचित्त, एषणीयअनेषणीय, याचित-अयाचित, लब्ध-अलब्ध ऐसे दो-दो भेद हैं। उनमें से हम अचित्त को ही निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य मानते हैं, वह भी एषणीय, याचित और लब्ध हो। इसके अतिरिक्त सचित्त, अनेषणीय आदि सभी प्रकार के सरिसव श्रमणों के लिए अभक्ष्य हैं, एतदर्थ ही सरिसव को मैं भक्ष्य और अभक्ष्य-दोनों मानता हूँ।
सोमिल-भगवन् ! मास को आप भक्ष्य मानते हैं या अभक्ष्य ? महावीर-वह भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है। सोमिल-वह किस प्रकार?
महावीर-ब्राह्मण ग्रन्थों में मास दो प्रकार का कहा है-द्रव्यमास और कालमास। इनमें से कालमास श्रावण से लेकर आषाढ़ मास पर्यन्त है, जो बारह ही मास अभक्ष्य हैं। द्रव्यमास भी दो प्रकार का है (१) अर्थमास (माष) और धान्यमास (माष)। इनमें से अर्थमास भी दो प्रकार का हैसुवर्णमाष और रुप्यमाष। ये दोनों माष श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। अब रहा धान्यमास, उसके भी शस्त्रपरिणत, अशस्त्रपरिणत, एषणीय, अनेषणीय, याचित, आयाचित, लब्ध और अलब्ध, अनेक प्रकार हैं। उनमें से शस्त्रपरिणत, एषणीय और लब्ध धान्य ही श्रमणों के लिए भक्ष्य है, शेष सचित्त आदि दोषयुक्त धान्यमास अभक्ष्य हैं।
सोमिल-भगवन् ! कुलत्था आपके लिए भक्ष्य है या अभक्ष्य है ? महावीर-कुलत्था भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है। सोमिल-यह कैसे ?
महावीर-ब्राह्मण ग्रन्थों में "कुलत्था" शब्द के दो अर्थ होते हैं कुलथी धान्य और कुलीन स्त्री। कुलीन स्त्री तीन प्रकार की होती हैं-कुलकन्या, कुलवधू और कुलमाता। ये कुलत्था श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं।
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