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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २०१ मायामृषा-मायापूर्वक झूठ बोलने से, मिथ्यादर्शन शल्य-विपरीत श्रद्धा से जीव कर्मों का संचय कर भारी गुरुत्व को प्राप्त होता है।
गौतम-भगवन् ! जीव किस प्रकार लघुत्व को प्राप्त होते हैं ?
भगवान गौतम ! उपर्युक्त १८ पापस्थानों का त्याग करने से जीव शीघ्र लघुत्व को प्राप्त होते हैं।
-भग. शतक १, उ. १, सूत्र २८०/२८१ एक समय में एक ही आयुष्य का बंध होता है ___ गौतम-भगवन् ! अन्ययूथिक यह बात कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो आयुष्य का बंध करता है। इस भव का आयुष्य बांधता है, उसी समय परभव का आयुष्य भी बांधता है और जिस समय परभव का आयुष्य बांधता है, उसी समय इस भव का आयुष्य भी बांधता है। परभव का आयुष्य बांधता हुआ इस भव का आयुष्य बांधता है
और इस भव का आयुष्य बांधता हुआ परभव का आयुष्य बांधता है। भगवन् ! क्या यह कथन ठीक है?
भगवान बोले-गौतम ! एक समय में एक जीव के दो आयुष्य बांधने की बात गलत है, क्योंकि एक समय में एक जीव एक ही आयुष्य का बंध करता है-इस भव का आयुष्य अथवा परभव का आयुष्य।
-भग. सूत्र शतक ५, उ. ३, सूत्र १ एक भव में एक आयुष्य का वेदन होता है __गौतम-भगवन् ! अन्य तीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, प्ररूपणा करते हैं, कि जैसे एक के बाद एक, क्रमपूर्वक अन्तर रहित गांठें देकर जाल (मछलियां पकड़ने का साधन) बनाया जाता है। वह जाल उन सब गांठों से गुम्फित यावत् संलग्न रहता है। इसी तरह जीवों ने अनेक भव किये हैं। उन अनेक जीवों के अनेक आयुष्य उस जाल की गांठों के समान परस्पर संलग्न हैं। इसलिये एक जीव एक ही समय दो भव का आयुष्य वेदता है-इस भव का और परभव का। हे भगवन् ! यह किस तरह है? __भगवान-अन्य तीर्थकों का उपर्युक्त कथन मिथ्या है। आयुष्य के लिये अनेक जीवों के एक साथ तथा एक जीव के एक साथ दो आयुष्य वेदन के लिये उन्होंने जो जालग्रन्थि का दृष्टान्त दिया है वह अयुक्त है। क्योंकि यदि आयुष्य को जाल-ग्रन्थि के समान माना जाय तो अनेक जीवों का आयुष्य
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