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२०२ भगवती सूत्र : एक परिशीलन एक साथ रहने का प्रसंग आएगा, जो कि बाधित है। इसी तरह एक जीव के साथ अनेक भवों के आयुष्य का संबंध होने से अनेक गति के वेदन का प्रसंग आयेगा, तथा दो भव के आयुष्य का वेदन मानने से दो भवों को भोगने का प्रसंग आयेगा, जो कि प्रत्यक्ष-बाधित है। आयुष्य के लिये जालग्रन्थि का जो दृष्टान्त है वह केवल शृंखला रूप समझना चाहिये। जिस तरह सांकल की कड़ियां परस्पर संलग्न हैं, उसी तरह एक भव के आयुष्य के साथ दूसरे भव का आयुष्य प्रतिबद्ध है और उसके साथ तीसरे, चौथे आदि भवों का आयुष्य क्रमशः प्रतिबद्ध है। इस तरह भूतकालीन हजारों आयुष्य मात्र सांकल के समान प्रतिबद्ध हैं। __तात्पर्य यह है, कि एक के बाद दूसरे आयुष्य का वेदन होता जाता है। परन्तु एक ही भव में अनेक आयुष्य प्रतिबद्ध नहीं है। अतः एक जीव एक समय में एक ही आयुष्य का वेदन करता है। अर्थात जब इस भव के आयुष्य का वेदन करता है तब परभव के आयुष्य का वेदन नहीं करता है।
-भग. शतक ५, उ.३, सूत्र १ अल्पायु और दीर्घायु बांधने के कारण
गौतम-भगवन् ! जीव अल्पायु फल वाले कर्म कैसे बांधते हैं ?
भगवान गौतम ! तीन कारणों से जीव अल्पायु फल वाले कर्म बांधते हैं। यथा-प्राणियों की हिंसा करने से, झूठ बोलने से, और तथारूप श्रमण, माहण को अप्रासुक अनेषणीय अशन, पान, खादिम, स्वादिम देने से जीव,
अल्पायु फल वाले कर्म बांधते हैं। ____ गौतम-भगवन् ! जीव. दीर्घायु फल वाले कर्म किन कारणों से बांधते
भगवान-गौतम ! तीन कारणों से जीव दीर्घायु फल वाले कर्म बांधते हैं। यथा-प्राणियों की हिंसा न करने से, झूठ नहीं बोलने से और तथारूप माहन, ब्राह्मण को प्रासुक, एषणीय आहार-पानी बहराने से जीव शुभ दीर्घायु फल वाले कर्म बांधते हैं।
-भग. शतक ५, उ. ६, सूत्र १/२ मोह एक उन्माद है
गौतम-भगवन् ! उन्माद कितने प्रकार का है?
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