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________________ २०० भगवती सूत्र : एक परिशीलन अतएव वे कांक्षा मोहनीय कैसे वेदते होंगे? साथ ही मोह का वेग कितना प्रबल होता है, उसकी शक्ति कितनी प्रचण्ड है यह बात बालजीव बोधाय गौतम भगवान से पूछते हैं भगवन् ! क्या श्रमण निर्ग्रन्थ भी कांक्षा मोहनीय कर्म का वेदन करते भगवान गौतम ! श्रमण भी निम्न कारणों से कांक्षा मोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ज्ञानान्तर, दर्शनान्तर, चारित्रान्तर, लिंगान्तर, प्रवचनान्तर, प्रावचनिकान्तर, कल्पान्तर, मार्गान्तर, मतान्तर, भंगान्तर, नयान्तर, नियमान्तर और प्रमाणान्तर के द्वारा शंका, कांक्षा, विचिकित्सा वाले, भेदसमापन्न और कलुषसमापन्न होकर श्रमण निर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय कर्म वेदते हैं। -भग. शतक १, उ. ३, सूत्र ११७-११८ कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि गौतम-भगवन् ! जो पापकर्म किया है, क्या उसे भोगे बिना नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव का मोक्ष नहीं होता है ? __भगवान् गौतम ! किये हुए कर्मों को भोगे बिना नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव किसी का भी मोक्ष नहीं होता। क्योंकि मैंने कर्म के दो भेद बताये हैं-प्रदेश कर्म और अनुभाग कर्म। प्रदेश कर्म निश्चय ही भोगे जाते हैं। अनुभाग कर्म कोई वेदा जाता है और कोई नहीं वेदा जाता है। "कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि" किये हए कर्म अवश्य भोगने पडते हैं। चाहे किसी कर्म को विपाक से भोगे या किसी को प्रदेश से। -भग. श. १, उ. सूत्र १५४ जीव भारी कैसे होता है ? गौतम-भगवन् ! जीव किस प्रकार गुरुत्व को प्राप्त होते हैं ? भगवान ने कहा-गौतम ! प्राणातिपात-प्रमादपूर्वक प्राणों का अतिपात करने से, मृषावाद से, अदत्तादान से, मैथुन से, परिग्रह से, क्रोधमान-माया-लोभ से, राग-द्वेष से, कलह से, अभ्याख्यान-झूठा दोषारोपण करने से, पैशुन्य-चुगली से, पर-परिवाद-निन्दा करने से, रति-अरति से, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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