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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १९९ शिष्य शंका करता है कि “चलमाणे चलिए" इत्यादि प्रश्न करने का अभिप्राय क्या है?
गुरुदेव समाधान करते हैं-केवलज्ञान की उत्पत्ति और समस्त कर्मों के क्षय रूप मोक्ष का क्रम बतलाने के लिए इन नौ पदों की चर्चा की गई है।
किसी आचार्य का अभिप्राय है कि ये नौ पद सिर्फ कर्म के विषय में ही सीमित नहीं है, अपितु ये वस्तु मात्र के लिए लागू होते हैं। प्रथम चार पद उत्पत्ति के सूचक हैं और अन्त के पाँच पद विनाश के सूचक हैं। इन्हें प्रत्येक विषय पर घटाया जा सकता है। क्योंकि प्रत्येक वस्तु उत्पाद और विनाश से युक्त है।
-भगवती सूत्र शतक १, उ. १, सूत्र १
स्वयं कृत कर्म जीव अपने किये हुए कर्म को ही भोगता है किन्तु परकृत कर्म का भोग नहीं करता है। जैसा कि कहा है
स्वयं कृतं कर्म यदात्मना पुरा, फलं तदीयं लभते शुभाशुभम्। परेण दत्तं यदि लभ्यते स्फुटं, स्वयंकृतं कर्म निरर्थक तदा॥
स्वयं आत्मा ने जो कर्म पहले उपार्जन किये हैं, उन्हीं कर्मों का शुभ या अशुभ फल वह आत्मा भोगता है। यदि दूसरों के किये कर्म आत्मा भोगने लगे, तो अपने किये हुए कर्म निरर्थक हो जाएंगे।
गौतम- भगवन् ! क्या जीव स्वयंकृत दुःख भोगता है ? भगवान-गौतम ! कुछ भोगता है, कुछ नहीं भोगता। अर्थात् उदीर्ण-उदय में आए हुए कर्मों को भोगता है।
-भग. श. १, उ. २, सू. ६४ कांक्षा मोहनीय
साधना का मुख्य प्रयोजन मोक्ष प्राप्ति है। मोक्ष प्राप्ति में कांक्षा मोहनीय कर्म प्रबल बाधक है। इसके हटे बिना मोक्ष तो क्या मोक्षमार्ग भी पूरी तरह प्राप्त नहीं होता। अतः मोक्ष मार्ग की प्राप्ति के लिये कांक्षा मोहनीय कर्म दूर करना अनिवार्य है।
प्रश्न होता है कि अन्य जीव कांक्षा मोहनीय कर्म बांधे इसमें तो कोई विवाद नहीं है, लेकिन शायद श्रमण इसका बंध नहीं करते होंगे? साधु संसार का त्याग कर चुके हैं उनकी बुद्धि जिनागम से पवित्र हो चुकी है,
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