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भगवती सूत्र : एक परिशीलन अवस्था को प्राप्त अनगार, अल्पवेदना वाले और महानिर्जरा वाले हैं। और अनुत्तरोपपातिक देव, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं।
- भग. शतक ६, उ. १, सूत्र १२-१३ जीव सादि सान्त हैं ?
गौतम - भगवन् ! क्या जीव सादि सान्त हैं, सादि अनन्त हैं, अनादि सान्त हैं या अनादि अनन्त हैं ?
भगवान - कितने ही जीव सादि सान्त हैं, कितने ही सादि अनन्त हैं, कितने ही अनादि सान्त हैं, कितने ही अनादि अनंत हैं।
गौतम - भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
समाधान - गौतम ! नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य व देवगति के जीव, गति - आगति की अपेक्षा सादि सान्त हैं। सिद्ध गति की अपेक्षा सादि - अनन्त हैं। लब्धि की अपेक्षा भवसिद्धिक जीव अनादि सान्त हैं। संसार की अपेक्षा अभवसिद्धिक जीव अनादि अनन्त हैं।
-भगवती ६/३/१२-१३
जीव और अजीव के परिणाम
भारतीय दर्शनों में सांख्य आदि परिणामवादी हैं और न्याय आदि दर्शन अपरिणामवादी । जो धर्म और धर्मी का अत्यन्त भेद स्वीकार करते हैं, वे अपरिणामवादी दर्शन हैं, तथा धर्म व धर्मी का अभेद स्वीकार करने वाले परिणामवादी दर्शन हैं। इसी कारण भारतीय दर्शनों में तीन प्रकार की नित्यता का विचार विभिन्न दार्शनिकों ने मान्य किया है। उनमें से रामानुज जैसों ने परिणामीनित्यता स्वीकार की । उसमें भी सांख्य ने मात्र प्रकृति में ही परिणामीनित्यता मानी। वे पुरुष को कूटस्थनित्य मानते हैं। यही कूटस्थनित्यता नैयायिकों ने सब द्रव्यों में स्वीकार की है। बौद्ध क्षणिकवादी होने पर भी पुनर्जन्म मानते हैं, अतः उन्होंने नित्यता का एक तीसरा ही प्रकार संततिनित्यता पर बल दिया है।
द्रव्यों का परिणमन - रूपान्तर अर्थात् अवस्थान्तर होना परिणाम है। अर्थात् एक रूप को छोड़कर दूसरे रूप में परिवर्तित हो जाना परिणाम है। शिष्य प्रश्न करता है - भगवन् ! परिणाम कितने प्रकार का कहा गया
है ?
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