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१७६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
ज्ञान और चारित्र इहभविक या परभविक ?
बौद्ध आत्मा को क्षणिक मानते हैं। उनके मत के अनुसार परलोक में अनुयायी आत्मा नहीं है। अतः आत्मा का ज्ञानगुण भी आत्मा के साथ नहीं जा सकता। इसका निराकरण करने के लिये गौतम पूछते हैं
भगवन् ! मोक्ष के अंग ज्ञान आदि को आत्मा जब एक बार प्राप्त कर लेता है, तब वे भवान्तर में साथ रहते हैं या नहीं ?
भगवान कहते हैं - गौतम ! ज्ञान तीनों तरह का है कोई ज्ञान इहभविक है, कोई ज्ञान परभविक है और कोई उभयभविक - दोनों भवों में साथ रहने वाला है।
गौतम - भगवन् ! चारित्र इहभविक है, परभविक है या तदुभयभविक
है ?
भगवान - गौतम ! चारित्र इसी भव में रहता है। परभव में साथ नहीं जाता। इसी तरह तप और संयम भी समझना चाहिये ।
यहाँ स्वरूप - रमण रूप चारित्र का ग्रहण नहीं किया है वरन् अनुष्ठान रूप-क्रिया स्वरूप चारित्र लिया गया है।
- भग. श. १, उ. १, सूत्र ५४-५५ महावेदना और महानिर्जरा
गौतम - भगवन् ! जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, अल्पवेदना व महानिर्जरा वाले हैं, अथवा अल्पवेदना वाले और अल्पनिर्जरा वाले हैं ?
भगवान - गौतम ! कितने ही जीव, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव अल्पवेदना व महानिर्जरा वाले हैं और कितने ही जीव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं।
गौतम-भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
भगवान - गौतम ! प्रतिमा प्रतिपन्न (प्रतिमा को धारण किया हुआ) साधु, महावेदना वाला और महानिर्जरा वाला है। छठी और सातवीं पृथ्वी में रहे हुए नैरयिक जीव, महावेदना वाले और अल्पनिर्जरा वाले हैं। शैलेशी
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