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१२८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन शक्ति अतीत काल में साधना द्वारा उपलब्ध होती थी तो आज विज्ञान ने एटम बम आदि अणुशक्ति को विज्ञान के द्वारा सिद्ध कर दिया है कि पुद्गल की शक्ति कितनी महान् होती है।
इस प्रकार भगवतीसूत्र में सहस्रों विषयों पर गहराई से चिन्तन हुआ है। यह चिन्तन अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। इस आगम में स्वयं श्रमण भगवान् महावीर के जीवन के और उनके शिष्यों के एवं गृहस्थ उपासकों के व अन्यतीर्थिक संन्यासियों के और उनकी मान्यताओं के विस्तृत प्रसंग आये हैं। आजीवक सम्प्रदाय के अधिनायक गोशालक के सम्बन्ध में जितनी विस्तत सामग्री प्रस्तुत आगम में है, उतनी अन्य आगमों में नहीं है। ऐतिहासिक तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ और उनके अनुयायियों की तथा उनके चातुर्याम धर्म के सम्बन्ध में प्रस्तुत आगम में पर्याप्त जानकारी है। प्रस्तुत आगम से यह सिद्ध है कि भगवान महावीर के समय में भगवान् पार्श्वनाथ के सैकड़ों श्रमण थे। उन श्रमणों ने भगवान महावीर के अनुयायियों से और उनके शिष्यों से चर्चाएं कीं। वे भगवान महावीर के ज्ञान से प्रभावित हुए। उन्होंने चातुर्याम धर्म के स्थान पर पंच महाव्रत रूप धर्म को स्वीकार किया। इस आगम में महाराजा कूणिक और महाराजा चेटक के बीच जो महाशिलाकण्टक और रथमूसल संग्राम हुए थे, उन युद्धों का मार्मिक वर्णन विस्तार के साथ दिया गया है। इन युद्धों में क्रमशः चौरासी लाख और छियानवें लाख वीर योद्धाओं का संहार हुआ था। युद्ध कितना संहारकारी होता है, देश की सम्पत्ति भी विपत्ति के रूप में किस प्रकार परिवर्तित हो जाती है ! युद्ध में उन शक्तियों का संहार हुआ जो देश की अनमोल निधि थीं। इसलिए युद्ध की भयंकरता बताकर उससे बचने का सकत भी प्रस्तुत आगम में है। इक्कीसवें शतक से लेकर तेईसवें शतक तक वनस्पतियों का जो वर्गीकरण किया गया है, वह बहुत ही दिलचस्प है। इस वर्णन को पढ़ते समय ऐसा लगता है कि जैनमनीषी-गण वनस्पति के सम्बन्ध में व्यापक जानकारी रखते थे।
वनस्पतिकाय के जीव किस ऋतु में अधिक आहार करते हैं और किस ऋतु में कम आहार करते हैं, इस पर भी प्रकाश डाला है। वर्तमान विज्ञान की दृष्टि से यह प्रसंग चिन्तनीय है। प्रस्तुत आगम में 'आलूअ' शब्द का प्रयोग अनन्तजीव वाली वनस्पति में हुआ है। यह 'आलू' अथवा 'आलुक' वनस्पति वर्तमान में प्रचलित “आलू" से भिन्न प्रकार की थी या यही है? भारत में पहले आलू की खेती होती थी या नहीं, यह भी अन्वेषणीय है।
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