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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन १२९ प्रस्तुत आगम में इतिहास, भूगोल, खगोल, समाज और संस्कृति, धर्म और दर्शन और उस युग की राजनीति आदि पर जो विश्लेषण किया गया है वह शोधार्थियों के लिए अद्भुत है, अनूठा है। प्रश्नोत्तरों के माध्यम से जो आध्यात्मिक गुरु गंभीर तत्त्व समुद्घाटित हुए हैं, वह बोधप्रद हैं। प्रस्तुत आगम में आजीवक संघ के आचार्य मंखलि गोशालक, जमाली, शिवराजर्षि, स्कन्धक संन्यासी आदि के प्रकरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। उस युग में वर्तमान युग की तरह संकीर्ण सम्प्रदायवाद नहीं था। उस युग के संन्यासी सत्य को प्राप्त करने के लिए तत्पर रहते थे। यही कारण है कि स्कन्धक संन्यासी जिज्ञासु बनकर भगवान् महावीर के पास पहुंचे और जब उनकी जिज्ञासाओं का समाधान हो गया तो सम्प्रदायवाद सत्य को स्वीकार करने में बाधक नहीं बना। तत्त्व-चर्चा की दृष्टि से जयन्ती श्रमणोपासिका, मदुक श्रमणोपासक, रोह अनगार, सोमिल ब्राह्मण, कालास्यवेशीपुत्त और तुंगिया नगरी के श्रावकों के प्रश्न मननीय हैं। प्रस्तुत आगम में साधु, श्रावक और श्राविका के द्वारा किए गए प्रश्न आये हैं, पर किसी भी साध्वी के प्रश्न नहीं आये हैं। क्यों नहीं साध्वियों ने जिज्ञासाएं व्यक्त की? वे समवसरण में उपस्थित होती थीं, उनके अन्तर्मानस में भी जिज्ञासाओं का सागर उमड़ता होगा, पर वे मौन क्यों रहीं? यह विचारणीय है। प्रस्तुत आगम में जहाँ आजीवक, वैदिक परम्परा के तापस और परिव्राजक भगवान् पार्श्वनाथ के श्रमण और भगवान् महावीर के चतुर्विध संघ का इसमें निर्देश है। तथागत बुद्ध महावीर के समकालीन थे और दोनों का विहरण क्षेत्र भी बिहार आदि प्रदेश थे। पर न तो स्वयं बुद्ध का भगवान महावीर से साक्षात्कार हुआ और न किसी भिक्षु का ही। ऐसा क्यों? यह भी विचारणीय है। इसके अतिरिक्त पूर्णकाश्यप, अजितकेशकम्बल, प्रबुद्ध कात्यायन, संजयवेलट्ठीपुत्त, आदि जो अपने आपको जिन मानते थे तथा तीर्थंकर कहते थे, वे भी भगवान् महावीर से नहीं मिले हैं। यह भी चिन्तनीय है। गणित की दृष्टि से पापित्यीय गांगेय अनगार के प्रश्नोत्तर अत्यन्त मूल्यवान् हैं। भगवतीसूत्र का पर्यवेक्षण करने से यह भी पता चलता है कि भगवान् महावीर ने साध्वाचार के सम्बन्ध में एक विशेष क्रान्ति की थी और उस क्रान्ति से भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमण अपरिचित थे। भगवान् महावीर ने स्त्रीत्याग और रात्रिभोजनविरमण रूप दो नियम बढ़ाये। उत्तराध्ययन में केशी-गौतम संवाद से स्पष्ट है कि महावीर ने पार्श्वनाथ की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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