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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १२३ वह किसी कारण-विशेष से वहाँ से चल देता है और पुनः उसी आकाशप्रदेश में कम से कम एक समय में और अधिक से अधिक अनन्तकाल के पश्चात् आता है।
परमाणु द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से अप्रदेशी है। काल की दृष्टि से एक समय की स्थिति वाला परमाणु अप्रदेशी है और उससे अधिक समय की स्थिति वाला सप्रदेशी है। भाव की दृष्टि से एक गुण वाला अप्रदेशी है और अधिक गुण वाला सप्रदेशी है। इस प्रकार अप्रदेशित्व और सप्रदेशित्व के सम्बन्ध में भी वहाँ विस्तार से चर्चा है।
पुद्गल जड़ होने पर भी गतिशील है। भगवतीसूत्र शतक १६, उद्देशक ८ में कहा है-पुद्गल का गतिपरिणाम स्वाभाविक धर्म है। धर्मास्तिकाय उसका प्रेरक नहीं पर सहायक है। प्रश्न है-परमाणु में गति स्वतः होती है या जीव के द्वारा प्रेरणा देने पर होती है ? उत्तर है-परमाणु में जीवनिमित्तक कोई भी क्रिया या गति नहीं होती, क्योंकि परमाणु जीव के द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता और पुद्गण को ग्रहण किये बिना पुद्गल में परिणमन कराने की जीव में सामर्थ्य नहीं है।
भगवतीसत्र शतक ५, उद्देशक ७ में कहा गया है-परमाण सकम्प भी होता है और अकम्प भी होता है। कदाचित् वह चंचल भी होता है, नहीं भी होता। उसमें निरन्तर कम्पनभाव रहता ही हो यह बात भी नहीं है और निरन्तर अकम्पनभाव रहता हो यह बात भी नहीं है। द्वयणुक स्कन्ध में कदाचित कम्पन और कदाचित अकम्पन दोनों होते हैं। उनके द्वयंश होने से उनमें देशकम्पन और देशअकम्पन दोनों प्रकार की स्थिति होती है। त्रिप्रदेशी स्कन्ध में भी द्विप्रदेशी स्कन्ध के सदृश कम्प और अकम्प की स्थिति होती है। केवल देशकम्प में एकवचन और द्विवचन सम्बन्धी विकल्पों में अन्तर होता है। जैसे-एक देश में कम्प होता है, देश में कम्प नहीं होता। देश में कम्प होता है, देशों में कम्प नहीं होता। देशों में कम्प होता है, देश में कम्प नहीं होता। इस प्रकार चतुःप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक समझना चाहिए।
भगवतीसूत्र शतक २, उद्देशक १ में पुद्गल परमाणु की मुख्य आठ वर्गणाएँ मानी हैं(१) औदारिकवर्गणाः-स्थूल पुद्गलमय है। इस वर्गणा से पृथ्वी, पानी,
अग्नि, वाय, वनस्पति और त्रस जीवों के शरीर का निर्माण होता है।
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