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१२४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन (२) वैक्रियवर्गणाः-लघु, विराट्, हल्का, भारी, दृश्य, अदृश्य विभिन्न
क्रियाएँ करने में सशक्त शरीर के योग्य पुद्गलों का समूह। (३) आहारकवर्गणाः-योगशक्तिजन्य शरीर के योग्य पुद्गलसमूह। (४) तैजसवर्गणाः-तैजस शरीर के योग्य पुद्गलों का समूह ।
कार्मणवर्गणाः-ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के रूप में परिणत होने वाले
पुद्गलों का समूह, जिनसे कार्मण नामक सूक्ष्म शरीर बनता है। (६) श्वासोच्छ्वासवर्गणाः-आन-प्राण के योग्य पुद्गलों का समूह। (७) वचनवर्गणाः-भाषा के योग्य पुद्गलों का समूह।। (८) मनोवर्गणाः-चिन्तन में सहायक होने वाला पुद्गल-समूह। ___ यहाँ पर वर्गणा से तात्पर्य है एक जाति के पुद्गलों का समूह। पुद्गलों में इस प्रकार की अनन्त जातियाँ हैं, यहाँ पर प्रमुख रूप से आठ जातियों का ही निर्देश किया है। इन वर्गणाओं के अवयव क्रमशः सूक्ष्म और अतिप्रचय वाले होते हैं। एक पौद्गलिक पदार्थ अन्य पौद्गलिक पदार्थ के रूप में परिवर्तित हो जाता है। औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस ये चार वर्गणाएँ अष्टस्पर्शी हैं। वे हल्की, भारी, मृदु और कठोर भी होती हैं। कार्मण, भाषा और मन ये तीन वर्गणाएँ चतुःस्पर्शी हैं। सूक्ष्मस्कन्ध हैं। इनमें शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष ये चार स्पर्श होते हैं। श्वासोच्छ्वासवर्गणा चतुःस्पर्शी
और अष्टस्पर्शी दोनों प्रकार की होती है। __भगवतीसूत्र शतक १८, उद्देशक १0 में गणधर गौतम ने जिज्ञासा प्रस्तुत की कि परमाणु पुद्गल एक समय में लोक के पूर्व भाग से पश्चिम भाग में या पश्चिम के अन्त भाग से पूर्व के अन्त भाग में, दक्षिण के अन्त से उत्तर के अन्त भाग में, उत्तर से दक्षिण के अन्त भाग में या नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे जाने में समर्थ है? भगवान् ने कहा-हाँ गौतम ! समर्थ है और वह सारे लोक को एक समय में लांघ सकता है। इससे यह स्पष्ट है कि परमाणु पुद्गल में कितना सामर्थ्य रहा हुआ है।
इस प्रकार भगवतीसूत्र में अनेक प्रश्न पुद्गल के संबंध में आये हैं। जिस प्रकार पुद्गलास्तिकाय के सम्बन्ध में जिज्ञासाएँ हैं, वैसे ही अन्य अस्तिकायों के सम्बन्ध में यत्र-तत्र जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की गई हैं। वैशेषिक, न्याय, सांख्य प्रभृति दर्शनों ने जीव, आकाश और पुद्गल ये तत्त्व माने हैं। उन्होंने पुद्गलास्तिकाय के स्थान पर प्रकृति, परमाणु आदि शब्दों का उपयोग
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