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पुद्गल : एक चिन्तन
पुद्गल जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द रहा है जिसे आधुनिक विज्ञान ने मैटर (matter) और न्याय-वैशेषिक दर्शनों ने भौतिक तत्त्व कहा है, उसे ही जैन दार्शनिकों ने पुद्गल कहा है। बौद्धदर्शन में पुद्गल शब्द का व्यवहार 'आलय-विज्ञान' या 'चेतना-संतति' रहा है। पर जैनदर्शन में पुद्गल शब्द मूर्तद्रव्य के अर्थ में है। केवल भगवतीसूत्र शतक ८, उद्देशक १0 में अभेदोपचार से पुद्गलयुक्त आत्मा को भी पुद्गल कहा है। पर शेष सभी स्थलों पर पुद्गल को पूरणगलनधर्मी कहा है। 'तत्त्वार्थराजवार्तिक,३०३ सिद्धसेनीया 'तत्त्वार्थवृत्ति',३०४ धवला३०५ और हरिवंशपुराण,३०६ आदि अनेक ग्रन्थों में गलन-मिलन स्वभाव वाले पदार्थ को पुद्गल कहा है।
पुद्गल वह है जिसका स्पर्श किया जा सके, जिसका स्वाद लिया जा सके, जिसकी गन्ध ली जा सके और जिसे निहारा जा सके। पुद्गल में स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण ये चारों अनिवार्य रूप से पाये जाते हैं। यह बात भगवतीसूत्र शतक २, उद्देशक १० में स्पष्ट की गई है। . भगवतीसूत्र शतक २, उद्देशक १० में पुद्गल के चार प्रकार बताये हैं(१) स्कन्ध, (२) देश, (३) प्रदेश और (४) परमाणु३०५ | दो से लेकर अनन्त परमाणुओं का एकीभाव स्कन्ध है। कम से कम दो परमाणु पुद्गल के मिलने से द्विप्रदेशी स्कन्ध बनता है। द्विप्रदेशी स्कन्ध का जब भेद होता है तो वे दोनों परमाणु बन जाते हैं। तीन परमाणुओं के मिलने से त्रिप्रदेशी स्कन्ध बनता है और उनके पृथक् होने पर दो विकल्प हो सकते हैं-एक तीन परमाणु या एक परमाणु और एक द्विप्रदेशी स्कन्ध। इसी प्रकार अनन्त परमाणुओं के स्वाभाविक मिलन से एक लोकव्यापी महास्कन्ध भी बन जाता
है।
___आचार्य उमास्वाति ने लिखा है३०८ स्कन्ध का निर्माण तीन प्रकार से होता है-भेदपूर्वक, संघातपूर्वक, भेद और संघातपूर्वक। स्कन्ध एक इकाई है। उस इकाई का बुद्धिकल्पित एक विभाग स्कन्धदेश कहलाता है। हम जिसे देश कहते हैं वह स्कन्ध से पृथक नहीं है। यदि पृथक हो जाय तो वह स्वतन्त्र स्कन्ध बन जायेगा। स्कन्धप्रदेश स्कन्ध से अपृथक्भूत अविभाज्य अंश है। अर्थात् परमाणु जब तक स्कन्धगत है तब तक वह स्कन्धप्रदेश
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