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भगवती सूत्र : एक परिशीलन ११५ मोहनीयकर्म का ही होता है। उपशम काल में मोह पूर्ण रूप से प्रभावहीन हो जाता है, पर उपशम स्थिति केवल अन्तर्मुहूर्तमात्र की है। अतः जीव को पुनः पुनः प्रयल करना पड़ता है। कर्मों के क्षय से होने वाली आत्मा की अवस्था क्षायिक या क्षयनिष्पन्न भाव है। कर्मों का क्षय हो जाने से पुनः किसी कर्म का बन्ध नहीं होता। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय इन चार घाति कर्मों के हलकेपन से आत्मा की जो अवस्था होती है वह क्षायोपशमिक या क्षयोपशमनिष्पन्न भाव कहलाता है। जितना आत्मा पुरुषार्थ करता है उतना ही वह कर्म के भार से हलकापन अनुभव करता है। यह हलकापन ही क्षायोपशमिक भाव है। उपशम और क्षयोपशम भाव में विपाक रूप में उदयाभाव की स्थिति एक सदृश होती है। औपशमिक भाव में प्रदेशरूप में उदय नहीं होता, पर क्षायोपशमिक भाव में प्रतिपल प्रतिक्षण कर्म का उदय, वेदन और क्षय होता रहता है। इस कर्मक्षय के साथ ही भविष्यकाल में उदयप्राप्त कर्मों का उपशमन होता है। इसलिए यह भाव क्षयोपशमनिष्पन्न भाव कहलाता है। कर्मों के उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम के बिना स्वभावतः जीव में जो परिणतियाँ होती हैं, वह पारिणामिक भाव है। इस प्रकार भाव के सम्बन्ध में अनेक जिज्ञासाएँ गणधर गौतम के द्वारा प्रस्तुत की गईं और भगवान् ने उन जिज्ञासाओं का समाधान दिया। योग और उसके प्रकार __भगवतीसूत्र शतक सोलह, उद्देशक तीन में गणधर गौतम ने जिज्ञासा प्रस्तुत की-योग कितने प्रकार का है ? भगवान् ने योग के तीन प्रकार बतलाये-मन, वचन और काय। योग शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में होता है, पर वर्तमान में मुख्य रूप से योग शब्द दो अर्थ में व्यवहृत है-मिलन
और समाधि। आज साधना-पद्धति और आसन आदि के अर्थ में उसका अधिक प्रचार है। पर जैनपरिभाषा में योग का अर्थ मन, वाणी और शरीर की प्रवृत्ति है। योग एक प्रकार का स्पन्दन है जो आत्मा और पुद्गलवर्गणा के संयोग से होता है। वीर्यान्तरायकर्म के क्षय या क्षयोपशम व नामकर्म के उदय से मन, वचन और काय वर्गणा के संयोग से जो आत्मा की प्रवृत्ति होती है वह योग है। इन तीन योगों में काययोग संसार के प्रत्येक प्राणी में होता है। स्थावरों में केवल काययोग होता है। विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवों में काययोग और वचनयोग होते हैं। संज्ञी मनुष्य और तिर्यञ्चों में तीनों योग होते हैं। भगवतीसूत्र शतक पच्चीस, उद्देशक पहले में इन तीनों योगों के विस्तार से पन्द्रह प्रकार भी बताये हैं।
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