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सोमिल ब्राह्मण के विचित्र प्रश्न
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भगवतीसूत्र शतक १८, उद्देशक १0 में सोमिल ब्राह्मण का वर्णन है। वह वैदिक परम्परा का महान् ज्ञाता था। उसके अन्तर्मानस में जिगीषु वृत्ति पनप रही थी। वह चाहता था कि मैं शब्दजाल में भगवान् महावीर को उलझा कर निरुत्तर कर दूँ। इसी भावना से उसने भगवान् महावीर के सामने अपने प्रश्न प्रस्तुत किए-"क्या आप यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुक विहार करते हैं ? आपकी यात्रा आदि क्या है?" उत्तर में भगवान् महावीर ने कहा-तप, यम, संयम, स्वाध्याय और ध्यान आदि में रमण करता हूँ, यही मेरी यात्रा है। यापनीय के दो प्रकार हैं-इन्द्रिययापनीय, नोइन्द्रिययापनीय। पांचों इन्द्रियाँ मेरे अधीन हैं और क्रोध, मान आदि कषाय मैंने विच्छिन्न कर दिए हैं, इसलिए वे उदय में नहीं आते। इसलिए मैं इन्द्रिय
और नो-इन्द्रिययापनीय हूँ। वात, पित्त, कफ, ये शरीर सम्बन्धी दोष मेरे उपशान्त हैं, वे उदय में नहीं आते। इसलिए मुझे अव्याबाध भी है। मैं आराम, उद्यान, देवकुल, सभास्थल, प्रभृति स्थलों पर जहाँ स्त्री, पश और नपुंसक का अभाव हो, ऐसे निर्दोष स्थान पर आज्ञा ग्रहण कर विहार करता हूँ, यह मेरा प्रासुक (निर्दोष) विहार है।
सोमिल ने पुनः पूछा-'सरिसवया' भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ?
भगवान् महावीर ने समाधान दिया-सरिसवया शब्द के दो अर्थ हैंसदृशवयससमवयस्क तथा दूसरा सरसों। सदृशवय के तीन प्रकार हैं-एक साथ जन्मे हुए, एक साथ पालित-पोषित हुए और एक साथ क्रीड़ा किए हुए। ये तीनों श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं और धान्य सरिसव भी दो प्रकार के हैं-शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरणित, शस्त्रपरिणत भी दो प्रकार के हैं-एषणीय और अनेषणीय। अनेषणीय अभक्ष्य हैं। एषणीय भी याचित और अयाचित रूप से दो प्रकार के हैं। याचित भक्ष्य हैं और अयाचित अभक्ष्य हैं। __ सोमिल ने पुनः शब्दजाल फैलाते हुए कहा-'मास' भक्ष्य है या अभक्ष्य है? भगवान ने समाधान की भाषा में कहा-मास याने महीना, और माष याने सोना-चाँदी आदि तोलने का माप। ये दोनों अभक्ष्य हैं और माष यानी उड़द, जो शस्त्रपरिणत हों, याचित हों, वे श्रमण के लिए भक्ष्य हैं।
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