SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन ९१ सोमिल ने पुनः पूछा-'कुलत्था' भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं? भगवान् ने फरमाया-कुलत्था शब्द के भी दो अर्थ हैं-एक कुलीन स्त्री (कुलस्था) और दूसरा अर्थ है धान्यविशेष (कुलस्थ)। जो धान्यविशेष कुलत्था हैं वह शस्त्रपरिणत एवं याचित हैं तो भक्ष्य हैं। कुलीन स्त्री अभक्ष्य है। सोमिल ने देखा कि महावीर शब्द-जाल में फँस नहीं रहे हैं, अतः उसने एकता और अनेकता का प्रश्न उपस्थित किया कि आप एक हैं या दो हैं ? अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं, अतीत, वर्तमान और भविष्य में परिणमन के योग्य हैं ? भगवान महावीर ने एकता और अनेकता का समन्वय करते हुए अनेकान्त दृष्टि से कहा-सोमिल ! मैं द्रव्यदृष्टि से एक हूँ। ज्ञान और दर्शन रूप दो पर्यायों के प्राधान्य से दो भी हूँ। सोमिल ! उपयोग स्वभाव की दृष्टि से मैं अनेक हूँ। इस प्रकार अपेक्षाभेद से एकत्व और अनेकत्व का समन्वय कर सोमिल को विस्मित कर दिया। वह चरणों में झुक पड़ा तथा श्रावक के १२ व्रतों को ग्रहण कर भगवान् महावीर का अनुयायी बना। इस कथाप्रसंग से भगवान् महावीर की सर्वज्ञता का स्पष्ट निदर्शन होता है। आगमयुग की अनेकान्त दृष्टि भी इसमें स्पष्ट रूप से व्यक्त हुई है। तीसरी बात इसमें 'मास' शब्द का प्रयोग हुआ है जो महीने के अर्थ में है। वह श्रावण महीने से प्रारम्भ होकर आषाढ़ पूर्णिमा में समाप्त होता है। इससे यह ज्ञात होता है कि श्रावण प्रथम मास था और आषाढ़ वर्ष का अन्तिम मास था। प्रस्तुत प्रसंग में 'जवनिज्ज-यापनीय' शब्द का प्रयोग हुआ है। दिगम्बर परम्परा में यापनीय नामक एक संघ है जिसके प्रमुख आचार्य शाकटायन थे। मूर्धन्य मनीषियों को इस सम्बन्ध में अन्वेषणा करनी चाहिए कि क्या यापनीय संघ का सम्बन्ध 'जवनिज्ज' से था? पंडित बेचरदासजी दोशी ने लिखा है कि "जवनिज्ज" का यमनीय रूप अधिक अर्थयुक्त एवं संगत है, जिसका सम्बन्ध पांच यमों के साथ स्थापित होता है। यापनीय शब्द से इस प्रकार का अर्थ नहीं निकलता, यद्यपि 'जवनिज्ज' शब्द वर्तमान युग में नया और अपरिचित-सा लग रहा है पर खारवेल के शिलालेख में 'जवनिज्ज' का प्रयोग हुआ है जो इस शब्द की प्राचीनता और प्रचलितता को अभिव्यक्त करता है।२५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy