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क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का स्वरूप होने पर भी अज्ञानी जीव आत्मा के स्वरूप तथा रत्नत्रय धर्म के स्वरूप के बारे में इस व्यवस्था को नहीं समझता, इसलिए वह मुख्यतया तीन प्रकार की भूलें कर रहा है। इन्ही भूलों की विस्तृत चर्चा पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ के सातवें अधिकार में निश्चयाभास, व्यवहाराभास
और उभयाभास के रूप में की है। इन भूलों को पेकिंग और माल की भाषा में निम्नानुसार समझा जा सकता है।
(1) निश्चयाभास :- पेकिंग की आवश्यकता बिल्कुल न समझकर इसे व्यर्थ जानकर उसका सर्वथा निषेध करना निश्चयाभास है, अर्थात्
आत्मा को सर्वथा रागादि रहित मानना और व्रत शील संयम आदि को सर्वथा हेय जानकर उनका निषेध करना निश्चयाभास है।
(2) व्यवहाराभास :- माल का स्वरूप न समझकर, उसे पेकिंग से भिन्न न जानकर, पेकिंग को ही माल समझना व्यवहाराभास है, अर्थात् आत्मा को मनुष्य, देव आदिरूप ही मानना और व्रत शील संयम आदि को ही मोक्षमार्ग मानना व्यवहाराभास है।
(3) उभयाभास :- पेकिंग और माल दोनों में अंतर न समझकर दोनों को एक समान मानना उभयाभास है, अर्थात् आत्मा के द्रव्य और पर्याय दोनों रूपों को उपादेय मानना और वीतरागभाव तथा व्रत शील संयम आदि शुभभाव, दोनों को मोक्षमार्ग मानना उभयाभास है।
(4) माल और पेकिंग के सन्दर्भ में ज्ञानी की मान्यता :- ज्ञानी 'माल' को 'माल' और पेकिंग को ‘पेकिंग' समझते हैं। वे पेकिंग का सर्वथा निषेध करके निश्चयाभासी नहीं होते, और न उसी को माल मानकर व्यवहाराभासी होते हैं। उक्त दोनों को एक समान मानकर उभयाभासी भी नहीं होते। वे पेकिंग के माध्यम से माल की सही पहचान करके पेकिंग को गौण करके माल का उपभोग करते हैं।
(5) माल और पेकिंग के सम्बन्ध में व्यवहारनय के कथन:व्यवहारनय से पैकिंग को ही माल कहा जाता है या इन दोनों को एक कहा
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