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क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन सम्यग्ज्ञान :- जिनागम का पठन-पाठन आदि पेकिंग है और अपने आत्मा को जानना माल है।
सम्यक्चारित्र :- अणुव्रत महाव्रतादि बाह्य-क्रियायें और तदनुरूप शुभभाव पेकिंग हैं और आत्मस्वरूप में लीनता माल है।
जिसप्रकार माल सहित पेकिंग को भी माल कहते हैं, उसीप्रकार निश्चय रत्नत्रय सहित व्यवहार रत्नत्रयरूप शुभभाव एवं क्रिया (पेकिंग) को भी रत्नत्रय कहने का व्यवहार है। इसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिए।
प्रश्न :- क्या भगवान आत्मा को माल और शुद्ध पर्यायों को पेकिंग कहा जा सकता है ?
उत्तर :- उदाहरण को सन्दर्भ सहित तथा एकदेश ग्रहण करना चाहिए। यहाँ मोक्षमार्ग का प्रकरण है और वीतरागभाव ही वास्तविक मोक्षमार्ग है, अतः उसे 'माल' अर्थात् मूल वस्तु समझना चाहिए। जब भगवान आत्मा का वर्णन करना हो तब उसे माल तथा पर्यायों को पेकिंग कहा जाता है।
इस प्रकार मुक्ति का मार्ग पेकिंग सहित प्रारम्भ होता है। उसकी पूर्णता होने पर पेकिंग छूट जाती है और माल अर्थात् मुक्ति का मार्ग, मार्ग के फल अर्थात् मुक्ति में परिवर्तित हो जाता है।
सिद्धजीव, पुद्गल परमाणु तथा धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और काल द्रव्य बिना पेकिंग के रहते हैं। शुद्ध पुद्गल परमाणु को माल और कुछ पुद्गल-स्कन्धों को पेकिंग-सामग्री कहा जा सकता है।
यह पेकिंग और माल सम्बन्धी व्यवस्था जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाई हुई है। हमारे मनोभावों और उन्हें व्यक्त करने वाले बाह्याचरण में भी यही व्यवस्था लागू होती है। लोक में हर व्यक्ति इस व्यवस्था को जानता है और इसलिए पेकिंग को पेकिंग तथा माल को माल समझकर यथायोग्य आचरण करता है।
माल और पेकिंग सम्बन्धी भूल :- लोकव्यवहार में अत्यन्त चतुर
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