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क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का स्वरूप
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आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेवश्री कानजी स्वामी भगवान आत्मा का स्वरूप समझाने के लिए नारियल का उदाहरण दिया करते हैं। जिस प्रकार नारियल के बाल, उसकी नरेटी (काचली) तथा गोले के ऊपर का लाल छिलका – ये सब नारियल की पेकिंग है, माल नहीं। लाल छिलके के भीतर जो सफेद और मीठा गोला है वही माल है, वही असली नारियल है। उसीप्रकार यह औदारिक शरीर, आठ कर्म और मोह-राग द्वेषादि विकारी भाव आत्मा नही हैं। ये तो आत्मा की पेकिंग हैं। ज्ञान-दर्शनमयी चैतन्य स्वभावी त्रिकाली ज्ञायक भाव ही माल है, वही असली आत्मा है।
माल और पेकिंग साथ-साथ रहते हैं, इसलिए पेकिंग को भी माल कहा जाता है; परन्तु पेकिंग के साथ माल हो तो उस पेकिंग को माल कहा जाएगा। यदि माल न हो और मात्र पेकिंग हो तो उसे कचरा कहा जाता है। कागज के डिब्बे में मिठाई हो तो डिब्बे को मिठाई या मिठाई का डिब्बा कहा जाता है। मिठाई निकल जाने पर डिब्बे को कचरा समझकर फेंक दिया जाता है। ___जिसप्रकार नारियल, मिठाई, साबुन आदि स्थूल पदार्थ तथा संसारी जीव पेकिंग सहित होते हैं; उसीप्रकार साधक दशा में उत्पन्न होने वाले सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र भी पेकिंग सहित होते हैं। असली रत्नत्रय अर्थात् माल को शास्त्रों में निश्चय रत्नत्रय कहा जाता है और इनके साथ होने वाले शुभभाव और बाह्यक्रियारूप पेकिंग को निश्चय-व्यवहार का उपचार करके शास्त्रों में व्यवहार-रत्नत्रय कहा जाता है।
इस प्रकार व्यवहार रत्नत्रय धर्म की पेकिंग है और निश्चय-रत्नत्रय माल है। रत्नत्रय के तीनों अंगों की पेकिंग और माल का स्वरूप निम्नानुसार समझा जा सकता है :
सम्यग्दर्शन :- सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की श्रद्धा और जीव आदि सात तत्त्वों की विकल्पात्मक श्रद्धा पेकिंग है तथा परद्रव्यों से भिन्न आत्मा की रुचि माल है।
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