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क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन
जाता है। जैसे- 'मिठाई का डब्बा' या 'घी का घड़ा' आदि । ज्ञानी निश्चय के ज्ञाता होते हैं इसलिए उनके द्वारा किए गए उक्त कथन व्यवहारनय के कहे जाएँगे, परन्तु अज्ञानी पेकिंग को ही माल समझता है इसलिए उसके द्वारा किए गए उक्त कथन व्यवहाराभास हैं, व्यवहारनय नहीं । सच्चे नय ज्ञानी को ही होते हैं। अज्ञानी को नयाभास होता है।
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यह जीव बाह्यक्रिया और शुभभाव रूप पेकिंग को ही धर्म समझता है। इसे वीतरागभावरूप माल की पहचान ही नहीं है। इस भूल का उल्लेख करते हुये 'धर्मबुद्धि से धर्मधारक व्यवहाराभासी' प्रकरण के प्रारम्भ में पण्डित टोडरमलजी मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ में पृष्ठ 220 पर लिखते हैं
" तथा कितने ही धर्मबुद्धि से धर्म साधते हैं, परन्तु निश्चयधर्म को नहीं जानते, इसलिए अभूतार्थरूप धर्म को साधते हैं । वहाँ व्यवहार सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र को मोक्षमार्ग जानकर उनका साधन करते हैं । "
उक्त कथन से स्पष्ट है कि यह जीव रत्नत्रयधर्म के लिए प्रयत्न करता है, परन्तु इसका प्रयत्न पेकिंग के लिए होता है माल के लिए नहीं । यह पेकिंग में मुग्ध है, परन्तु माल से अपरिचित है। इसलिए इसके अभिप्राय में व्यवहाराभास नामक मिथ्यात्वरूप महापाप होता है । इसे न असली माल मिलता है और न सच्ची पेकिंग। उक्त व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टियों की मान्यता की विस्तृत चर्चा करते हुए सातवें अधिकार में सम्यग्दर्शनज्ञान - चारित्र की प्राप्ति के लिए उनके द्वारा किये गये प्रयत्नों में होने वाली भूलों का विस्तृत विवेचन किया गया है। डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल द्वारा सम्पादित मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ में इन भूलों को प्रस्तुत करते हुए निम्न शीर्षक बनाये गये हैं :
:
अ - सम्यग्दर्शन का अन्यथा स्वरूप पृष्ठ 221 से 234 ब - सम्यग्ज्ञान का अन्यथा स्वरूप पृष्ठ 235 से 237 तक स - सम्यग्चारित्र का अन्यथा स्वरूप पृष्ठ 238 से 248 तक
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