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________________ चक्षुष्मान् ! अनुप्रेक्षा का मूल सूत्र है तन्मयता। जो इष्ट है, जो पाना चाहते हो, उसके साथ तादात्म्य स्थापित करो, तन्मय बनो। जिस शब्द को दोहरा रहे हो, उसकी अर्थात्मा के साथ तन्मय बनो। परिणमन शुरू होगा। तुम परिणमन के साथ जीते हो। जिस वस्तु के साथ सम्पर्क स्थापित होगा, जिससे तुम प्रभावित बनोगे, वैसा परिणमन शुरू हो जाएगा। द्रव्य का जगत् बहुत छोटा है। पर्याय का जगत् बहुत बड़ा है। हर परिणमन एक पर्याय का निर्माण करता है। आदमी वह होता है, जो उसका पर्याय होता है। ___ तन्मयता के सिद्धान्त को मनोविज्ञान की भाषा में अचेतन मन (अनकॉन्शियस माइण्ड) तक अपनी बात पहुंचाना कहा जाता है। अनुप्रेक्षा का आशय केवल शब्दों का पुनरावर्तन नहीं है। उसका आशय है-शब्द में जिस अर्थ का सन्निवेश किया है, वैसी अनुभूति करना। सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा करो और उसके साथ तादात्म्य स्थापित न हो तो सहिष्णुता का विकास कम संभव बनेगा। शब्दोच्चारण के साथ सहिष्णुता की अनुभूति जागे । अनुप्रेक्षा का प्रेक्षा के साथ गहरा अनुबन्ध है । प्रेक्षा का अभ्यास परिपक्व हो तब अनुप्रेक्षा सम्भव बनती है । अनु शब्द सार्थक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003167
Book TitleAdhyatma ki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size2 MB
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