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अध्यात्म की वर्णमाला
करो । कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठकर दीर्घश्वास का प्रयोग करो । ध्यान दर्शन केन्द्र पर जमाओ । श्वास का प्रयोग चलता रहे । ध्यान उसी पर जमा रहे । विचार अथवा विकल्प आएं, उनमें मत उलझो । उनकी प्रेक्षा कर लो और फिर दर्शन केन्द्र के ध्यान में ही अपने आपको नियोजित कर दो। आंतरिक जागरूकता रहे, कोई विचार या विकल्प आएगा तो टिक नहीं पाएगा । श्वास जितना लम्बा अथवा मंद होगा, सहज श्वास - संयम (कुम्भक ) की स्थिति बनेगी । दर्शन केन्द्र का जागरण सहज बन जाएगा ।
यह अभ्यास सापेक्ष है । अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाओ, जिससे ऊर्जा को सहन कर सको और लक्ष्य तक पहुंच सको ।
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लाडनूं १ जनवरी, १९९२
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