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चक्षुष्मान् !
आत्मा की आवाज सुनो। पहले परखो, कौनसी आवाज आत्मा की है, कौनसी नहीं । बहुत लोग कहते हैं-यह मेरी आत्मा की आवाज है । मन की आवाज को आत्मा की आवाज मानना भ्रांति है ।
तुम पहचानो-प्रिय अप्रिय संवेदन से निकली हुई आवाज मन की आवाज है, आत्मा की नहीं। समता अथवा वीतरागता का स्वर फूटे, समझो-वह आत्मा की आवाज है।
तुम ललाट या अग्र मस्तिष्क की भाषा को समझो। उसकी संकेत लिपि को पढ़ो। वह कषाय का क्षेत्र (इमोशनल एरिया) है। वह उपशांत होता है, तब आत्मा ध्वनित होती है । वह उत्तेजित होता है तब निषेधात्मक भाव मन को मुखर कर देता है।
उसी ललाट के मध्य में एक केन्द्र है ज्योति केन्द्र। उसे गहरी एकाग्रता के साथ देखो। उस पर ध्यान केन्द्रित करो। वहां ज्योति किरण तुम्हारा स्वागत करने के लिए तैयार है।
- वहां अनेक मर्मस्थान हैं। आत्मा के प्रदेश सघन बनकर अवस्थित हैं। उनके प्रकाश पर एक ढक्कन है । उस ढक्कन को खोलने का प्रयत्न करो। वह खुल सकता है। आवश्यकता है धृति की और स्मृति की।
शरीर के भीतर जो है, वह ज्ञात नहीं है। ज्ञात बहुत कम, अज्ञात बहुत अधिक । अज्ञात के क्षेत्र में प्रवेश करो। संयम का सहारा लो। बहुत कुछ मिलेगा। वह मिलेगा, जिसकी तुम्हें कल्पना नहीं है।
लाडनूं १ फरवरी, १९९२
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