________________
चक्षुष्मान् !
जो होना है, उस पर ध्यान केन्द्रित करो । जो पाना चाहते हो उस पर दृष्टि टिकाओ। शक्ति, आनन्द और ज्ञान-इस त्रिपदी से सम्पन्न होना, इस त्रिपदी के विकास की साधन-सामग्री को पाना है । तुम शरीरधारी हो, इसलिए शरीर की शक्ति की उपेक्षा कर जी नहीं सकोगे । गंभीर चिन्तन करो, दृष्टिकोण बदल जाएगा। ।
तुम प्राणी हो, प्राणशक्ति की उपेक्षा कर कुछ कर नहीं सकोगे । जीवन का मूल आधार भोजन है । वह प्राणशक्ति को सहारा देता है । काम करने में जो शक्ति का व्यय होता है, वह उसकी पूर्ति कर देता है । शक्ति का मूल केन्द्र सूरक्षित है, तब तक ऐसा होता है । मूल केन्द्र के चलित हो जाने पर भोजन का अर्थ भी कम हो जाता है। शक्ति के मूल स्रोत को स्वस्थ और सुव्यवस्थित रखने के लिए चैतन्य केन्द्र का ध्यान बहुत उपयोगी है।
शक्ति केन्द्र, स्वास्थ्य केन्द्र और तैजस केन्द्र—यह शक्ति का त्रिकोण है । इसकी परिक्रमा करने वाला दीन-हीन और विमनस्क नहीं होता । यदि तुम हीन भावना से बचना चाहते हो, अवसाद (डिप्रेशन), भय, उदासी आदि मानसिक विकारों से मुक्त रहना चाहते हो तो शक्ति के त्रिकोण की साधना करो।
शक्ति केन्द्र और स्वास्थ्य केन्द्र-इन दो की साधना ही इन्द्रिय संयम अथवा ब्रह्मचर्य है । तैजस केन्द्र की साधना आहार-संयम है । इन्द्रिय-संयम की साधना करो, शक्ति केन्द्र और स्वास्थ्य केन्द्र अपने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org