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चक्षुष्मान् !
इस स्थूल शरीर में झांककर देखो । आत्मा, चैतन्य, कर्मपुद्गल, कर्म के विपाक, भावधारा, चित्त, मन और प्राण - ये सब इसी शरीर में हैं । इस शरीर की दृश्य धातुएं हैं – रक्त, मांस, आदि । दृश्य से अदृश्य बहुत अधिक है ।
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मज्जा
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अदृश्य को दृश्य करने का अभ्यास करो । एकाग्रता जितनी गहरी, उतना ही अदृश्य दृश्य के रंगमंच पर आ जाता है । निर्विचार रहो | यह निर्विचार ध्यान साक्षात्कार का महाद्वार है ।
आत्मा शरीर में व्याप्त है । उसकी सघनता सर्वत्र समान नहीं है । कहीं चतन्य विरल है और कहीं सघन । प्राण-शक्ति भी पूरे शरीर में व्याप्त है । उसके सघन और विरल क्षेत्र बने हुए हैं । चेतना और प्राण के सघन क्षेत्र का नाम है चैतन्य केन्द्र |
चैतन्य केन्द्रों को सक्रिय करने का अभ्यास करो । उन पर आए हुए आवरण को दूर करो, अन्तश्चेतना प्रगट होगी। अभी जो ज्ञान हो रहा है, वह इन्द्रियों के माध्यम से हो रहा है । फिर जो ज्ञान प्रगट होगा, उसका माध्यम इन्द्रियां नहीं होंगी । ये विकसित चैतन्य-केन्द्र नए करण बन जाते हैं, अतीन्द्रिय चेतना के स्रोत बन जाते हैं ।
चैतन्य केन्द्र पर लम्बे समय तक ध्यान करो । प्रारम्भ दो-चार मिनट से करो । धीरे-धीरे आगे बढ़ो | अभ्यास करते-करते एक-डेढ़ घंटा तक पहुंच जाओ । यह स्थिति ही आत्मानुभूति या ध्यान की वास्तविक अनुभूति तक ले जाएगी ।
शरीर में अनेक चैतन्य केन्द्र हैं । कुछ केन्द्र अन्तर्ज्ञान के विकास
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