________________
२६
अध्यात्म की वर्णमाला
कर्म के विपाक को समभाव से झेल लेता है, वह अशुभ बंध को प्रतनु बना देता है।
शरीर को देखना एक माध्यात्मिक प्रयोग है। शरीर को हर आदमी देखता है पर राग-द्वेष मुक्त भाव से हर कोई नहीं देख सकता।
तुम अभ्यास करो केवल देखने का, केवल द्रष्टा होने का। यद्यपि यह ध्यान की पूर्व अवस्था है, धारणा है । प्रारम्भ में इसका बहुत उपयोग है । यह सीमा नहीं है । इससे आगे बढ़ना है । ध्यान की भूमिका में जाना है। यह ध्यान की पृष्ठभूमि है इसलिए इसका सम्यक् प्रयोग करो।
जयपुर १ मई १९९१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org