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________________ यात्रा जैन मुनि की चर्या का एक महत्त्वपूर्ण अंग है-यात्रा। हजारों-हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए साधु-साध्वी ढाणी-ढाणी, गांव-गांव, शहर-शहर पहुंचकर इन्सान को अच्छा जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। अपने उपदेशों, आख्यानों, आन्दोलनों, अभियानों के माध्यम से जन-चेतना में नैतिक जाग्रति पैदा करते हैं। वर्ष भर में मात्र चार महीने (चातुर्मास) एक स्थान में रहते हैं, शेष आठ महीनें घूम-घूमकर जनता को सन्मार्ग दिखाने का प्रयत्न करते हैं। पैदल यात्रा के दौरान अनेक कठिनाइयां सामने आती हैं। मौसम की प्रतिकूलता, पथ की बोहड़ता, आहार-पानी, आवास/स्थान की कठिनाइयों के बावजूद साधु-साध्वियां झरने के जल की तरह निरन्तर गतिशील रहते हैं। समणश्रेणी जैनमुनि का एक अधुनातन रूप है। गणाधिपति गुरुदेव के शब्दों में-समणश्रेणी आधुनिक युग का संन्यास है। इस श्रेणी के लिए पदयात्रा की अनिवार्यता नहीं है। पदयात्रा की कठिनाइयों तथा क्षेत्रीय दूरी को शीघ्र तय करने के लिए वैज्ञानिक संसाधनों की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इन्हें वाहन के प्रयोग का विकल्प दिया गया। समण-समणी आवश्यकतानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए वाहन का प्रयोग कर सकते हैं। वाहन से यात्रा करने के कुछ लाभ स्पष्ट हैं• साधु-साध्वी को पैदल चलकर जिस दूरी को तय करने में महीने-महीने लग जाते हैं। वह दूरी समण/समणी द्वारा दो-तीन दिनों या कुछ ही घंटों में तय कर ली जाती है। • भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां साधु-साध्वियों का जाना कठिनतम है। ऐसे स्थानों पर समण समणी आसानी से पहुंच सकते हैं। . कई बार ऐसी राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठियां, सम्मेलन आदि होते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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