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________________ ३२ समण दीक्षा : एक परिचय पाठ्यक्रम भी किया गया है। कम्प्यूटर बीसवीं सदी का उत्तरार्द्ध विज्ञान और तकनीकी का युग है। विज्ञान और तकनीकी का एक सफलतम प्रयोग है-कम्प्यूटर । कम्प्यूटर ने हर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। इसकी कार्यक्षमता समय और श्रम-दोनों के अपव्यय को बचाती है। जैने विश्व भारती आगम सम्पादन तथा शोध के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य कर रही है। इसके पास विशाल पुस्तकालय है। जैन विश्व भारती संस्थान (विश्वविद्यालय) भी है। उसके कार्य की विशालता को देखकर एक चिन्तन सामने आया कि जै. वि. भा. में कम्प्यूटर व्यवस्था होनी चाहिए। तत्कालीन आचार्य तुलसी तथा युवाचार्य महाप्रज्ञ ने इस चिन्तन का मूल्यांकन किया। दृष्टि की अनुकूलता ने समणीवृन्द को इस कार्य के लिए प्रेरित किया। चार समणियों का एक दल कलकत्ता पहुंचा। उनमें से दो समणी ने दो वर्ष तक 'कम्प्यूटर पॉइन्ट' में अध्ययन कर 'डिप्लोमा' की डिग्री प्राप्त की। आज जैन विश्व भारती के अन्तर्गत साहित्य, आगम, भाष्य आदि के प्रकाशन तथा आगम ‘फीडिंग' आदि कार्य समणीवृन्द के निर्देशन में सम्पादित हो रहे हैं। भाषाओं का अध्ययन ___ समणश्रेणी के उदय के साथ तेरापंथ का प्रचार क्षेत्र विस्तृत हो गया। देश के दूर-दराज क्षेत्रों तथा विदेश में जैनधर्म दर्शन, प्रेक्षाध्यान, अणुव्रत, जीवन विज्ञान आदि के प्रचार की संभावना जगी। क्षेत्र के विस्तार के साथ विभिन्न भाषाओं की आवश्यकता सामने आई। चिन्तन चला। निष्कर्ष के रूप में अंग्रेजी भाषा के शिक्षण-प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी गई। अंग्रेजी एक ऐसी भाषा है, जो भारत तथा विदेश-दोनों में समान रूप से उपयोगी सिद्ध होती है। अतः समय-समय पर समणीवृन्द का अंग्रेजी के विशेष अध्ययन हेतु जयपुर, दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता, मद्रास, बैंगलोर आदि क्षेत्रों में जाना हुआ। वहां के श्रावकों ने उन लिए विशेष व्यवस्थाएं कीं। महीनों तक वहां रहकर अंग्रेजी का अध्ययन किया गया। इस प्रकार विशेष अध्ययन, शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्थाएं समय-समय पर होती रहीं, होती रहती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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