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शिक्षा (अध्ययन)
गणाधिपति श्री तुलसी के आचार्य काल में तेरापंथ ने शैक्षणिक ऊंचाइयों का संस्पर्श किया है। समणश्रेणी शिक्षा के नवीन प्रयोगों के लिए हैं, उनमें से एक है आधुनिक ज्ञान-विज्ञानयुक्त शैक्षिक विकास। पारम्परिक शिक्षा के साथ यदि युगीन संदर्भो को न जोड़ा जाए तो वह शिक्षा गति प्रदान नहीं कर सकती। किसी संगठन या संस्था की प्रगति का अंकन उसके सुशिक्षित सदस्यों के आधार पर किया जा सकता है। शिक्षा का उद्देश्य ___सामाजिक क्षेत्र में शिक्षा आजीविका से जुड़ी हुई है। जीवन-निवांह के लिए शिक्षा आलम्बनभूत होती है, किन्तु एक मुमुक्षु साधक के लिए शिक्षा ग्रहण का यह उद्देश्य कदापि नहीं हो सकता। शिक्षा ग्रहण के उद्देश्य की ओर इंगित करते हुए दशवैकालिक सूत्र कहता है
१. सुयं मे भविस्सई (मुझे श्रुत प्राप्त होगा)। २. एगग्गचित्तो भविस्सामि (मैं एकाग्रचित्त होऊंगा)। ३. अप्पाणं ठावइस्सामि (मैं आत्मा को धर्म में स्थापित करूंगा)। ४. ठिओ परं ठावइस्सामि (मैं धर्म में स्थित होकर दूसरों को
इसमें स्थापित करूंगा)। ये चार सूत्र बताते हैं कि अध्ययन डिग्री या आजीविका के लिए नहीं, आत्मोत्कर्ष के लिए किया जाना चाहिए। समण/समणी के सामने आत्मोत्कर्ष का लक्ष्य स्पष्ट है। शिक्षा के विभिन्नरूप
समणश्रेणी के सामने शिक्षा का विस्तृत क्षेत्र है। किसी भी उपयोगी
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