SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की सवव्यापकता के द्वारा बेबीलोन भारत के साथ खूब व्यापार करता था । बेबीलोन के शिल्पस्थापत्य पर भी भारतीय शिल्पस्थापत्य का प्रभाव है। इस प्रकार आर्द्र देश, आर्द्रनगर, आर्द्र राज तथा आर्द्र कुमार के ऐतिहासिक स्वरूप का विचार करने से पर्याप्त प्रमाण में सामग्री उपलब्ध है । इसी प्रकार अन्य भी अनेक साहित्य ग्रंथों के अनेक विधानों पर ऐतिहासिक दृष्टि से प्रकाश डाला जा सकता है । इस प्रकार की सामग्री हम खोज सकते हैं और दूसरे धर्मों के समान जैनधर्म की भी जगत व्यापी महिमा सिद्ध करने में हम अपने अभ्यास और बुद्धि का उपभोग कर सकते हैं ।" जैन प्रतीकों का परिचय जैन मन्दिरों में प्राय: निम्नलिखित प्रतीक मिलते हैं १. प्रयागपट्ट, २. स्तूप, ३. धर्मचक्र, ४. स्वस्तिक, ५. नंद्यावर्त, ६. चैत्यस्तंभ, ७. चैत्यवृक्ष, प. श्रीवत्स, ६. सहस्रकूट, १० चैत्य, ११. सर्वतोभद्रिका, १२. त्रिरत्न, १३. भ्रष्टमंगल १४. अष्टप्रातिहार्य, १५. चौदह स्वप्न, १६. नवनिधि, १७. नवग्रह, १८. मकरमुख, १६. शार्दूल, २०. कीर्तिमुख, २१. कीचक २२. गंगा-सिन्धु, २३. नाग-नागिन, २४. चरण, २५. पूर्णघट, २६. शरावस पुट, २७ पुष्पमाला, २८ ग्राम्र गुच्छक, २६. सर्प, ३० जटा, ३१. लांछन, ३२, यक्ष यक्षी, ३३. पद्मासन, ३८. खड़गासन, ३५. एक तीर्थंकर की प्रतिमा से चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमा तक, ३६. चौवीस से अधिक जिन प्रतिमानों के पट्ट् । इत्यादि १ आयाग पट्ट – वर्गाकार या आयताकार एक शिलापट्ट होता है जो पूजा के उद्देश्य से स्थापित किया जाता है इस पर कुछ जैन प्रतीक उत्कीर्ण होते हैं । कुछ पर मध्य में तीर्थंकर की मूर्ति भी होती है। बुलहर के अनुसार अर्हतों की पूजा के लिए स्थापित पूजापट्ट को आयागपट्ट हते हैं । ये स्तूप के चारों द्वारों में से प्रत्येक के सामने स्थापित किए जाते थे । ६७ २. स्तूप - यह लम्बोतरी प्राकृति का होता है। इसके चार वेदिकायें होती हैं । ३. धर्मचक्र – गोल फलक में बना हुआ चक्र होता है । इस के बारह या चौबीस अरे होते हैं । कोई धर्मचक्र १००० अरों का भी होता है । जिनमूर्तियों की चरण चौकी पर इसका अंकन होता है। 1. यह लेख श्री महावीर जैन विद्यालय बम्बई के रजतमहोत्सव ग्रंथ पृ० ८१ ८४ गुजराती से साभार हिन्दी रूपान्तर करके उद्धृत किया है। इस लेख के लेखक हैं-चिमनलाल मनसुखलाल संघवी । लेखक ने इस लेख की तैयारी में जिन ग्रंथों तथा पत्त्रों का आधार लिया है वे ये हैं- A History of Sumer and Akkad. 2. A History of Babilon. 3. A History of Assyria - by L. W. King. 4. Seven great Monarchy of the East. by Raweinson 5. Historians History ofthe world मानो बेबीलोन विभाग । 6. Ur of the Chaldees by Leonard woolley. 7. Cambridge Ancient History VoL. I. 8. Ancient Geography. 9. Jews and jerusalam. 10. Encyclopedia Britannica में से लेख में प्रयोग किये शब्दों का भाग । 11. त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र पर्व १० : 12. The Times of India 19.3.1935 13, Old Testament. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy