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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म उत्तरावस्था में नेबुचन्द्रनेझार कौन से धर्म का अनुयायी था। इस का अभी निर्णय नहीं हो पाया। सायरस के शिलालेखों से जो प्रमाण मिलते हैं कि बेबीलोन में वंश परम्परागत चली आती मडूक की पूजा और बलिदान की प्रथ। इसने बन्द कराई थी। उत्तरावस्था के इसके शिलालेखों से पता चलता है। इस विषय में प्रजा की सूचनार्थ ढिंढोरा पिटवाया था, उस में इसने कहा था कि मडूक इत्यादि को जिन्हें तुम लोग अपना इष्टदेव मानते हो, वहां बलिदान बन्द किया जाता है तथा बाईबल के पुराने करार में नेबुचन्द्रनेझार के राजकीय प्रभुता को स्वीकार करने पर भी उसके वारसों का भयंकर नास्तिकों के रूप में उल्लेख किया है। जब नेबुचन्द्रनेझार ने जेरोशलिम को लूटा था तब वहां काफी क्षति पहुँचायी थी । यह देखते हुए यह यहूदी धर्म का भी नहीं हो सकता। प्रारम्भ में इसके मडूक के बनाये हुए भव्य मन्दिर से यह तो निश्चित है कि पूर्वावस्था में यह मईक पुजारी था। पर उत्तरावस्था में पुत्र की दीक्षा के बाद भारत आने पर इसका जैनधर्म स्वीकार करना विशेष संभव है। उत्तर-वय में इसने बेबीलोन में जो नौ फुट ऊँची तथा नौ फुट चौड़ी एक स्वर्ण प्रतिमा को निर्माण कराया था और उसी समय अपने बनाये हुए इस मुख्य पूजन मन्दिर में एक मूर्ति के समीप सर्प तथा दूसरी के समीप सिंह का बिम्ब बनाया था । तथा इसके द्वारा निर्माण कराये हुए इस्टार के दरवाजे का कुछ भाग टूट जाने से जिसके टुकड़े बलिन और कोन्स्टेटीनोपाल के म्यूजियमों में सुरक्षित रखे हुए हैं उनका जो भाग अब भी वहां मौजूद है उस पर वृषभ (बैल), गैडा, सूअर, साँप, सिंह, बाज़' इत्यादि खुदे हुए दिखलाई देते हैं । जो जैन तीर्थंकरों के प्रतीक चिन्ह है, लांछन हैं। बाज मन्दिर की मूर्तियां बेबीलोन के पुराणों में अथवा पुरानी बाईबल में वर्णित देवों में से कोई भी मेल नहीं खातीं। परन्तु उनकी परख खोदकाम के संशोधक अभी तक भी नहीं कर सके। यह वस्तुस्थिति यदि नेबुचन्द्रनेझार ने जैनधर्म को स्वीकार किया हो तो इस की पुष्टि के साथ ही जैन संशोधकों के लिए अभ्यास के क्षेत्र को खुला करती है । बेबीलोन के महाकाव्य 'Epic of creation में बेबीलोन का एक राजकुमार अपने एक मित्र के सहयोग से स्वर्ग में पहुंचने का प्रयास करता है किन्तु वह आधबीच में ही सरक पड़ता है ऐसा वर्णन मिलता है। यह रूपक जैन वाङ्मय में अभय कुमार की प्रेरणा से आर्यावर्त (भारत) में पहुँचकर दीक्षा लेने की प्रार्द्र कुमार की भावना तथा बाद में दीक्षा त्याग करने के कथानक से मेल खाता है। बेबीलोन का भारत के साथ सांस्कृतिक संबन्ध तो ईसा पूर्व पच्चीस सौ वर्षों से था ऐसा इतिहासकार स्वीकार करते हैं । हमुराबी के कानूनी ग्रंथ पर भी भारती न्याय प्रथा का सम्पूर्ण प्रभाव है। स्त्री पर व्यभिचार का आरोप आने पर यदि स्त्री उस आरोप को झूठा सिद्ध न कर सके तो उसे यूक्रेटिस नदी में डूबो दिया जाता था। तथापि यदि वह नदी उसे जीवित बाहर निकाल दे तो माना जाता था कि स्त्री पवित्र है। यह प्रथा स्त्री की पवित्रता, कड़ी सजा तथा कुदरती चमत्कार से निर्दोषता सिद्ध करने की भारतीय न्यायशास्त्र की प्रणाली की प्राभारी है। तदोपरांत प्राचीन प्रवासियों के लेखों के आधार से भी जान सकते हैं कि भरुच खंभात और सोपारा की बन्दरगाहों 1. वृषभ-ऋषभदेव का, गेंडा-श्रेयांसनाथ का, सूअर-विमलनाथ का, बाज-अनन्तनाथ का, सांप-पार्श्वनाथ का और सिह-महावीर का प्रतीक-लांछन है। ये क्रमशः जैनों के न० १,११,१३,१४,२३,२४वें तीर्थ करों के लांछन 2. यह बाज़ मंदिर जैनों के १४ वें तीर्थ कर अनन्तनाथ का होना चाहिये । क्योंकि बाज़ अनन्तनाथ का लांछन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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