________________
जैनधर्म की सर्वव्यापकता
११-कोरिया चीन में--(१) पातके (२) घघेलवाल (३) बाघानारे (जातियों के) जैनी हैं। १२-तिब्बत में--सोनावारे (जाति के) जैनी हैं । १३-महाचीन में-जांगड़ा (जाति के) जैनी हैं। १४-कोचीन में---अमेढ़ना (जाति के) जैनी हैं।
१५-पैकिन शहर में तुनावारे (जाति के) जैनियों के ३०० जिनमंदिर हैं। ये सब मंदिर शिखरबंध हैं, सब जड़ानो जड़े हैं। जिन प्रतिमाएं खड़ी कायोत्सर्ग मुद्रा में तथा पद्मासन में हैं। इन का एक हाथ सिर पर लोच कर रहा है (ये दीक्षा कल्याणक की प्रतिमाए हैं)। मंदिरों में सोने के चित्राम हो रहे हैं । छत्र हरे-पन्ने, मोतियों के डिब्बेदार हैं । सोने चाँदी के कल्पवृक्ष बन रहे हैं। मंदिरों में वन की रचना भी बहुत है। क्योंकि दीक्षा समय के सूचक हैं (तीर्थकर सदा वन में जाकर दीक्षा ग्रहण करते है) । यहां के जैनियों के पास जो पागम है वे चीन की लिपि में हैं। खूब धर्म का उद्योत हो रहा है।
१६-तातार देश के सागर नगर में यात्री गया। यहां के जैनमंदिर पातके तथा घघेलवाल (जाति के) जैनियों के है । जिनबिम्ब बहुत ही मनोहर हैं । इन प्रतिमानो का आकार ३॥ गज ऊंचा और १।। गज चौड़ा है। सब जिन बिम्ब चौथेकाल (चौथे आरे) के अन्त समय के हैं। इन प्रतिमानों के दोनों हाथ ऊंचे उठ रहे हैं। पातके जैनी तो यह कहते हैं कि ये (तीर्थंकर) उपदेश दे रहे हैं। दोनों हाथ उठाकर सदाकाल उपदेश दे रहे हैं । घघेलवाल जैनी कहते हैं कि ये तीन भवन के ईश्वर हैं। समवसरण में दोनों हाथ उठाकर भव्यजीवों को संबोधित करते हैं (केवल ज्ञान की प्राप्ति के बाद तीर्थंकर समवसरण में देशना देते हैं)।
१७- छोटे तिब्बत के मुंगार देश में बरजंगल नगर में यात्री गया। वहां बाघानारे (जाति के) जैनी हैं। इस नगर में जैनियों के ८००० घर हैं । तथा २००० बहुत सुन्दर जैन मंदिर बने हैं । मंदिरों के गबज कहीं तीन, कहीं पांच, कहीं सात हैं । एक एक मंदिर पर कलश सौ-सौ, दो-दो सौ विराजते हैं। इन मंदिरों में अरिहंत की माता अथवा श्री ऋषभदेव की माता मरूदेवी के बिम्ब विराजमान हैं । इन मंदिरों में रत्नों और पुष्पों के बरसने के चिन्ह छत्तों में अंकित हैं। तीर्थंकर के अपनी माता के गर्भ में आने के स्वप्नों के चित्राम भी हो रहे हैं। फूलों की शैया पर माता लेट रही है। ये लोग गर्भावस्था (च्यवन कल्याणक) की पूजा करते हैं।
१८-यात्री तिब्बत के एरूल नगर में गया । इस देश में जैनी राजा राज्य करता है। वहां के जैनी मावरे (जाति के ) हैं। इस शहर में एक नदी के किनारे पर २०००० (बीस हजार) जैन मंदिर हैं। यहां जेठ वदि १३, १४ को' बड़ी- बड़ी दूर से यात्री यात्रा करने के लिये आते हैं । बडी धमधाम होती है। इस नदी के किनारे पर संगमरमर पर सुनहरी काम वाले पत्थरों का मेरुपर्वत बना हआ है । वह १५० गज ऊंचा महासुन्दर है तथा इसके चारों तरफ पूर्व पश्चिम के
1. सोलहवें तीर्थ कर श्री शांतिनाथ का जन्म जेठ वदि १३ को भारतवर्ष के कुरुक्षेत्र प्रदेश के हस्तिनापुर नगर
में हया था । निर्वाण भी भारत के विहार प्रांत में सम्मेतशिखर (पाश्वनाथ) पर्वत पर इसी तिथि को हुआ था । दीक्षा हस्तिनापुर में जेठ वदि १४ को हुई थी। जन्म दीक्षा और निर्वाण-इन तीनों कल्याणकों के अवसर पर ६४ इन्द्र अपने देव-देवियों के साथ १००८ जल से भरे कलशों से तीर्थंकर को अभिषेक कराते हैं। इसीके उपलक्ष में इस नगर के जैनी जेठ वदि १३, १४ को प्रभु की प्रतिमा को मेरू पर्वत पर ले जाकर महाभिषेक कराते हैं। इससे ज्ञात होता है कि यहां मुख्य रूप से शांतिनाथ भगवान की मान्यता थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org