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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म 'लंकायां, पाताल-लंकायां श्री शांतिनाथ: 1" अर्थात् लंका में, पाताललंका में श्री शांतिनाथ का महातीर्थ है।
The ruling monarch of Cylon built a Vihar and a monastray for Nirgranthas in 3rd century B. C. (On the Indian sect of Jain P. 15)
__ अर्थात्-ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में लंका के राजा ने जैन मंदिर तथा निग्रंथों (जैन साधुओं) के लिये धर्मशाला (उपाश्रय) बनाये थे।
इस से स्पष्ट है कि ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में तँका का राजा जैनधर्मी था ।
६- भूटान, नेपाल, तिब्बत, तातार, हिमालय के आंचल में चीन आदि देशों में भी जैन धर्म का खूब विस्तार था । वहां पर जैन मंदिर, जैनतीर्थ, जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां, जैनस्मारक आदि; जैन राजा, जैन प्रजा, जैन साधु-साध्वियां बहुत संख्या में विद्यमान थे। समय समय पर इन स्थानों के तीर्थों, मंदिरों की यात्रार्थ भारत, भूटान आदि देशों से जैन लोग जाते आते रहे हैं।
वि० सं० १८०६ में दिगम्बर जैनी क्षत्रीय लामचीदास गोलालारे ब्रह्मचारी भूटान देश से जैन तीर्थों की यात्रा के लिये पैदल चला और यात्रा से वापिस लौटकर उसने अपनी यात्रा के विवरण में अपनी आँखों देखा हाल लिखकर उसकी १०८ प्रतियां भिन्न-भिन्न दिगम्बर जैन शास्त्र भंडारों में सुरक्षित की।
इस पैदल यात्रा में जहाँ-जहाँ वह पहुंच पाया और मंदिरों आदि के दर्शन किये-वहाँ वहां का आँखों देखा विवरण लिखा है जो इस प्रकार है
७-कोचीन मुल्क की सीमा पर बहावल पहाड़ की घाटी पर कोस २५० गये । इस पहाड़ पर बाहूबली (प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव के द्वितीय पुत्र) की प्रतिमाएं खड़े योग (कायोत्सर्ग) मुद्रा में बड़ी बड़ी ऊंची जगह-जगह पर हैं । (बाहुबलि का राज इसी क्षेत्र में था जिस की राजधानी तक्षशिला थी)।
८-कोचीन मुल्क के बीदमदेश-होवी नगर-इस देश में कई नगरों में आमेढना (जाति) के जैनी हैं। इनकी प्रतिमाए सिद्ध (तीर्थंकर के निर्वाण कल्याणक ) के आकार की हैं।
६-चीन मुल्क के गिरगमदेश,ढांकुल नगर में यात्री गया । इस देश के राजा की राजधानी भी इसी नगर में है। यहां के राजा तथा प्रजा सब जैन धर्मानुयायी हैं । ये सब लोग तीर्थकर की अवधिज्ञान की प्रतिमानों का पूजन करते हैं । इन्ही प्रतिमानों की मनःपर्यवज्ञान तथा केवलज्ञान की भी पूजा करते हैं । (च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान इन चार कल्याणकों की अथवा गृहस्थ, छद्मस्थ साधु तथा तीर्थकर अवस्थाओं की पूजा करते हैं)।
१०-चीन मुल्क के पैकिन नगर में यात्री आया वह लिखता है कि इस राज्य के आधीन १-तातार, २- दोनों तिब्बत, ३-कोरिया, ४-महाचीन, ५-खास चीन, ६-कोचीन तथा ७-अनेक टापू हैं। यहाँ सैकड़ों विद्यामंदिर हैं । इस क्षेत्र में कहीं-कहीं जैनधर्मानुयायी भी आबाद है । यात्री इस क्षेत्र में एक वर्ष तक घूमा । इन सब देशों में आठ तरह के जैनी हैं । खास चीन में तुनावारे (जाति के) जैनी हैं। - 1. सिंधी ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित, जिनप्रभ सूरि कृत विविध तीर्थकल्प पृ० ८६ । 2. तिजारा (राजस्थान) में जैनशास्त्र भंडार में सुरक्षित लामचीदास द्वारा लिखित विवरण वाली प्रति से यह
विवरण दिया है।
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