________________
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
स्थित है। दूसरा शिवलिंग सुलतानपुर लोधी से भू-उत्खनन से प्राप्त हुआ है, वह भी पहले वाले शिवलिंग के आकार का ही है। इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि इसके ऊपरी माग में एकमुखिया शिव की मूति अंकित है। ये दोनों शिवलिंग स्त्री-पुरुष की जननेन्द्रिय आकार के न होकर सिद्धशिला पर ऋषभ की मुक्तात्मा के रूप में गोलाकार लम्बोतरे आकार का प्रतीक है। सिद्धशिला को जैनों ने थाली के समान गोलाकार माना है और मुक्तात्मा को शिवलिंग के आकार का माना है। अतः ये दोनों शिवलिंग निर्विकार सिद्धावस्था के प्रतीक हैं। ये दोनों शिवलिंग विश्वेश्वरानन्द शोध संस्थान होशियारपुर (पंजाब) के पुरातत्त्व विभाग में सुरक्षित हैं।
वास्तव में शिव-ऋषभ का ही पर्यायवाची है और जो ऋषभ का पवित्र चरित्र है वही शिव का है। जैनाचार्य हेमचन्द्र ने सोमेश्वर के शिव मन्दिर में जाकर महादेव स्तोत्रकी रचना द्वारा शिव की राग-द्वेष रहित निर्विकार वीतराग-सर्वज्ञ देव के रूप में स्तुति की थी। अतः ऐसे स्वरूप को लक्ष्य में रखकर वैदिक आर्यों के भारत में आने से पहले शिव की मान्यता उपास्यदेव के रूप में थी। अतः मुमुक्ष प्रात्मा को ऐसे निर्विकार वीतराग, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी शिवरूप ऋषभ को मानने से ही प्रात्म कल्याण संभव है।
ऋषभदेव शिव केसे बन गए उसका उल्लेख कई ग्रन्थों में मिलता है। ईशान संहिता में लिखा है कि
. "माघ वदि त्रयोदश्यादिदेवो महानिशि।
शिवलिंग तयोभूतः कोटिसूर्य समप्रभः ॥" अर्थात्-माघ वदि त्रयोदशी की महानिशा (अंधेरी रात्रि) को आदिदेव ऋषभ करोडों सूर्यों के समान प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए।
शिवपुराण में भी स्पष्ट उल्लेख है कि-'मुझ शंकर का ऋषभ अवतार होगा।' वह सज्जन लोगों की शरण और दीनबन्धु होगा तथा उसका अवतार नवां होगा। यथा--
"इत्थं प्रभवः ऋषभोऽवतारः शंकरस्य मे।
सतां गतिर्दोनबन्धुर्नवमः कथितस्तु नः ॥ (शिव पुराण ४।४६) (१) नग्न और मलिन गात्र
"भगवान ऋषभदेव ने राजपाट, गृहस्थ परिवार, घन-दौलत आदि का त्याग कर मुनि दीक्षा ले ली अर्थात् सब प्रकार के परिग्रह का त्याग कर दिया और निर्ग्रन्थ मुनि हो गये। श्रीमद्भागवत के अनुसार उनके शरीर मात्र परिग्रह रह गया था। वे मलिन शरीर सहित ऐसे दिखाई देते थे मानो उन्हें भूत लग गया हो।
जैनागम कल्पसूत्र में भी ऋषभदेव ने दीक्षा लेने के बाद १३ मास तक इन्द्र द्वारा दिया हुआ एकमात्र देवदूष्य वस्त्र रखा, उसके बाद देवदूष्य का भी त्याग कर दिया और नग्न रहने लगे। स्मान न करने के कारण उनका शरीर मलिन दीख पड़ता था। .. पुराणों में शिव को भी नग्न और मलिन गात्र वाला माना है। उनकी मलिनता प्रदर्शित करने के लिए उनकी देह पर भभूत दिखलाई जाती है । (२) जटाओं का सद्भाव और दाढ़ो मूछों का अभाव
श्वेतांबर जैनाचार्य श्री विमल सूरि अपने ग्रंथ पउम चरियं (पद्मचरित्र) में लिखते हैं किश्री ऋषभदेव प्रभु ने दीक्षा लेने से लेकर ४०० दिनों तक निर्दोष आहार न मिलने के कारण निर्जल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org