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________________ लाला शांतिस्वरूप जैन ५६५ श्री हीरालाल भाभू (होशियारपुर) कांगडा तीर्थ के प्राचीन ऐतिहासिक पत्र 'विज्ञप्ति त्रिवेणी' पढ़ने पर जैनाचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी महाराज ने जैनसमाज की आँखों से अोझल काँगड़ा किले के भगवान श्री आदिनाथ के प्राचीन मंदिर को खोज निकाला और सन् १६२३ में होशियारपुर से विशाल यात्रा संघ निकाल कर इस प्राचीन तीर्थ के बंद द्वार पुन: जैनसमाज के लिये खुलवा दिये । इस ऐतिहासिक यात्रा संघ के संघपति बनने का सौभाग्य श्रीमान ला० हीरालाल भाभू होशियारपुर को प्राप्त हुआ। पूज्य मुनि श्री सुमतिविजय स्वामी जी, जैनाचार्य श्री विजयविद्या सरिजी, मनि विचारविजय जी भी इस संघ की शोभा बढ़ा रहे थे। संघपति लाला नानकचंदजी नाहर कांगडा तीर्थ का दूसरा विशाल यात्रासंघ जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी महाराज की छत्रछाया में सन् १९४० में होशियारपुर से निकला इस संघ के संघपति बनने का सौभाग्य लाला नानकचंद जी नाहर होशियारपुर को प्राप्त हुआ।। अन्य साधु साध्वियों के साथ जैनाचार्य श्री विजयसमुद्र सरि जी महाराज एवं महासती श्री देवश्री जी महाराज भी शोभा बढ़ा रहे थे। लगभग ७०० यात्री गण ने यात्रा का लाभ प्राप्त किया था। __ स्व० लाला अमरनाथ जी (होशियारपुर) लाला अमरनाथजी मुनि श्री हाकिमराय जी के छोटे भाई लाला गोरामल जी के सपत्र थे। बाल्यकाल से ही प्राप धर्मानुरागी थे और समाज सेवा के कार्य में सदैव संलग्न रहे। यवक मंडलों का गठन करके मंत्री के रूप में दीर्घकाल तक कार्य किया। श्रीसंध के मंत्रीपद तथा प्रधानपद को भी सुशोभित किया। श्रद्धेय श्री विजयवल्लभ सूरिजी महाराज पर आपको गाढ श्रद्धा थी । गुरुदेव भी पाप से बड़ा स्नेह करते थे। पाप बड़े मधुर वक्ता थे। गरुदेव के जीवन पर प्रकाश डालतेसमय अत्यंत विह्वल हो उठते थे । गुरुदेव के आदेश पर आपने श्री कांगडा तीर्थ के उद्धार केलिये भी मंत्री के रूप में कुछ समय कार्य किया था। देव-गुरु-धर्म उपासक लाला शांतिस्वरूप जैन होशियारपुर आपका होशियारपुर (पंजाब) में बीसा पोसवाल सम्पन्नघराने में जन्म हुआ। कपड़े के व्यवसाय में आप कुशल व्यापारी है। धार्मिक संस्कार तो आप को अपने माता-पिता से वरासत में मिले हैं। पाप गुरु आत्म, वल्लभ, समुद्र तथा इन की पट्ट परम्परा के अनन्य भक्त है। स्वभाव उदार, मिलनसार तथा मिष्टभाषी है। (१) स्व० प्राचार्य श्री मद्विजयवल्लभ सूरि जी ने पंजाब में जब से संक्रांति महोत्सव चालू किया तब से ही आप प्रतिमास के संक्रांति महोत्सव पर जहाँ कहीं भी आप की पट्टपरम्परा के प्राचार्य बिराजमान होते हैं वहां पहुंचकर संक्रांति सुनने जाते हैं, इसलिये आप संक्रान्ति भक्त के नाम से प्रसिद्ध हैं। TEE Harshi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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