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लाला सागरचन्द जैन
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लाला सागरचंद जैन श्रीसंघ के छः बार प्रधान तथा महासभा की वर्किंग कमेटी के कई साल सदस्य रहने वाले लाला सागरचंद जैन कुशल व्यवसायी, इतिहास अन्वेषक तथा स्वाध्यायी थे। . गाने बजाने का शौक बचपन से ही था। अपने शहर की भजन मंडली लेकर पंजाब में होने वाली प्रतिष्ठानों व समारोहों में पाप जाते रहे । पाप हार्मोनियम से पूजाएं मंदिर जी में पढ़ाते रहे । प्राचार्य विजय ललित सूरि जी आपके संगीत गुरु थे।
विवाहों में बाज़ारी औरों के नाचने गाने के ६० वर्ष पहले के भद्दे रिवाज के विरोध में आपने सामाना से एक ट्रैक्ट छपवा कर वितरित किया। प्रेम सभा सामाना के अध्यक्ष पद से अापने विधवा विवाह के पक्ष में ज़बरदस्त प्रचार किया।
आप निश्चिन्त विचारों के मालिक थे। जैनधर्म या मूर्तिपूजा पर कोई उलट बात अपको सहन न थी। १९५७ में स्था० आचार्य आनंदऋषि जी के साथ प्रार्य समाजियों के साथ हए शास्त्रार्थ में जैन पक्ष की ओर से बोलने का अधिकार मात्र प्रापको व आपके पुत्र महेन्द्र मस्त को था।
आप एक अच्छे वक्ता, लेखक व कवि थे। जैनधर्म पर कई निबन्ध आपने लिखे। प्रायः सारे भारत के जैन तीर्थों की यात्रा प्रापने थी । असहाय बहनों की आप गुप्त सहायता करते रहते थे। _सामाना मंडी में भ० कुंथुनाथ जैन मन्दिर के निर्माण के लिए आपने ग्यारह हजार रुपये दिये थे।
१६-२-७८ को आपके स्वर्गवास पर आपके सुपुत्रों "सदाराम सागरचंद जैन चैरिटेबल ट्रस्ट" की स्थापना की है।
श्री नाजकचंद जैन सफल गायक, गीतकार व लेखक श्री नाज़रचंद जैन के नाम से शायद ही कोई पंजाबी जैन अपरिचित हो । गुरुदेव विजयवल्लभ सूरि जी व विजयस मुद्र सूरि जी के ४०० से ज्यादा भजन आप अब तक बना चुके हैं।
"अब किसके सहारे" "हजारों सीप एक मोती', " जीवन की याद” तथा “समुद्र की लहरे-भजनों की यह चार पुस्तके आप स्वयं छपवा कर बाँट चुके हैं। भारतीय संस्कृति पर आपके धारावाहिक लेख दैनिक प्रताप (लाहौर) में चपे थे। जिला पटियाला हिन्दू मुस्लिम ऐतिहाद-कमेटी के मंत्री तथा व्यापारमण्डल के प्रधान रहे।
आजकल आप चण्डीगढ़ में अपने पुत्रों--नरेन्द्रकुमार और जिनेन्द्रकुमार के साथ रह
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