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________________ ५८८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म पं० हंसराज शास्त्री आप ब्राह्मण होते हुए भी जैनधर्म की आस्था रखते थे । जैन दर्शन के मार्मिक विद्वान थे । प्राचार्य श्री विजयबल्लभ सूरिजी के समकालीन थे । श्रापने जैनधर्म पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं। अनेक जैन साधु-साध्वियों को पढ़ाया । श्राप प्रखर वक्ता एवं संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे । प्रापका जन्म बिलगा गाँव में हुमा और देहाँत लुधियाना में प्रा । आप श्री श्रात्मानन्द जैन गुरुकुल के स्नातक हैं । कुशाग्रबुद्धि के धनी हैं । कवि, वक्ता तथा लेखक सर्वगुण सम्पन्न हैं । गुरु वल्लभ तथा गुरु समुद्र के निष्ठावान भगत हैं। "विद्याभूषण, न्यावतीर्थ, डबल एम० ए० संस्कृत में आचार्य, हिन्दी में प्रभाकर तथा साहित्यरत्न हैं । अनेक जैन शिक्षण संस्थानों में अध्यापक प्रध्यापक के रूप में आपने ख्याति प्राप्त की है प्रापकी वक्तृत्व कला लासानी है। श्रोताओंों को मंत्रमुग्ध करने वाली है । आशुकवि हैं । आपकी कविताएं, भजन, गाने जन-जन की ध्वनियों में सर्वत्र मुखरित हैं । सरल स्वभावी, निराभिमानी तथा सज्जन प्रकृति आपकी विद्वता में सोने में सोहागे की उपमा के लायक हैं। इस समय आप दिल्ली में निवास करते हैं और रिटायड जीवन व्यतीत कर रहे हैं । Jain Education International प्रोफेसर पं० रामकुमार जैन (राम) आपका जन्म मक्खननगर ( हस्तिनापुर के समीप ) गाँव जिला मेरठ में ब्राह्मण कुल में हुआ। आप दृढ़ जैनधर्मानुयायी हैं और सामाना निवासी परमार्हत ब्राह्मण पंडित श्री नीलकंठ के समान जैनशासन के वफादार भगत हैं । (पं० नीलकंठ का परिचय हम सामाना के वर्णन में कर ये हैं । जर्मन देशवासी स्वर्गवासी हर्मण जेकोवी आप जैनधर्म के उच्चकोटि के प्रथम जर्मन स्कालर थे जिन्होंने अनेक जैन ग्रंथों का अर्वाचीनढंग से सम्पादन और प्रकाशन किया है । जैनधर्म पर शोध-खोज के अनेक प्रशंसनीय साहित्य की रचनाएं की हैं । आप पहले व्यक्ति हैं । जिन्होंने जैनधर्म की प्राचीनता भगवान महावीर से पहले ऐतिहासिक दृष्टि से सिद्ध की है । जर्मनी में अनेक जैन स्कालर आपके शिष्य आज भी जैनधर्म की शोध-खोज में हुए हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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