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________________ ५८६ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म प्राध्यात्मिकता की श्रोर आपका काफी झुकाव है, जिसमें मुख्य भूमिका महत्तरा साध्वी मृगावती जी की है। धर्मति-श्री चन्नीलाल जी दगड़ (अमतसर) पंजाब के अग्रगण्य धर्मात्मा, श्रद्धालु, गुरुभक्त, चुस्त जैन धर्मानुयायी थे। बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास स्वपुरुषार्थ से व्यवसाय में पाशातीत उन्नति, सामियों को गुप्त रूप से सहायक, हजारों रुपये का धर्म-संस्थानों को दान, अनेक प्रकार की तपस्यायें कीं, व्रतधारी- श्रावक, रात्रि भोजन का सर्वथा त्याग, अनेक जैन संस्थानों के कार्यकर्ता सदस्य, श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब गुजरावाला के कर्मठ सहयोगी, अमृतसर की श्वेतांबर जैन संसथानों के ट्रस्टी यथा संरक्षक व्यवस्थापक, दान प्रवाह में मुक्त हस्त, प्रभृपूजा, सामायिक प्रतिक्रमण, व्रत-पच्चक्खाण में आपके नित्य नियम प्रशंसनीय थे। वि० सं० १९८६ में पूना शहर में प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सरि जी से बारह व्रतग्रहण, शत्रुजय, गिरनार, पाबु, तारंगा, समेत शिखर केसरियानाथ, मारवाड की पंचतीर्थी, हस्तिनापुर आदि अनेक तीर्थो की अनेक बार यात्राएं । शत्रुजय तीर्थ में यात्राएं बाल्यावस्था में ही चुस्त दृढ़ श्रद्धा तथा आचरण । अमृतसर में श्री आत्मानन्द जैन सैंट्रल लायब्रेरी पंजाब की स्थापना करके १४ वर्ष तक सारा खर्चा अपने पास से किया और श्रीसंघ को अर्पणा की। प्रतिष्ठानों आदि के अवसर पर पंजाब में सब जगह पहले पहुंच कर अग्रगण्य भाग लेते थे। आपके बड़े भाई लाला सोहनलाल जी का स्वर्गवास हो जाने पर निकट में ही श्री पर्यषण पर्व आने पर स्यापा-शोक आदि का त्यागकर धर्माराधना के जुट गये थे अतः अपने समय के आप पंजाब के गिने-माने आदर्श धर्ममूर्ति श्रावक थे। लाला सदाराम जैन—सामाना सामाना मंदिर के मूलनायक भ० शांतिनाथ जी को अपने हाथों से गादी पर विराजमान करनेवाले तथा अपने शहर में सबसे पहले गुरु वल्लभ का पार्शीवाद पाने वाले ला० सदारामजी शास्त्रज्ञान, धार्मिक क्रिया, पूजा प्रतिक्रमण आदि के जानकार श्रावक थे । सामाना में महासभा के अधिवेशन के अवसर पर प्राप स्वागत समिति के प्रधान बने।। स्वयं एक अच्छे गायक व गीतकार होने के साथ आप ८ वर्ष श्रीसंघ के प्रधान तथा २० वर्ष सेक्रेटरी रहे । प्रायः सभी जैनतीर्थों की यात्रा आपने की थी। ४ जन, १९६२ को ८१ वर्ष की उमर में आप स्वर्ग सिधारे । आपके दो पुत्र-सागरचंद व नाज़रचंद हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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