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________________ श्री वीरेन्द्रकुमार जैन ५८५ १. हिन्दू, जैन और हरिजन मंदिर प्रवेश । २. भगवान् महावीर की अहिंसा और महात्मा गाँधी । ३. जैन संयास मार्ग। ४. Fundamentals of Jainisim. ५. विश्वधर्म परिषद् और जैनधर्म कुछ वर्ष तक पंजाब विश्वविद्यालय और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत बोर्ड के सदस्य रहे। सरल स्वभाव, सज्जन, मिलनसार, मधुरभाषी, प्रामाणिक, प्रतिष्ठित, शिक्षक आदि । श्री वीरेन्द्रकुमार जैन जन्म-जंडियाला गुरु (अमृतसर) शिक्षा-बी० ए०, साहित्यरत्न, लगभग २५० लेख, कहानी, कविताएं हिन्दी की शीर्षस्थ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित । दो कृतियां हिन्द पाकेट बुक्स में । अनेक रचनाएं प्रतिनिधि संकलनों में संग्रहीत । साहित्य में विशेष रुचि । कई रचनाएं अन्य भाषाओं में अनुदित हुई। जैन समाज की साहित्यक और सांस्कृतिक गतिविधियों से प्रारम्भ में संबद्ध । आध्यात्मिक स्वाध्याय और अनुशीलन में प्रवृत्त । सम्प्रति-प्रकाशन उद्योग से संलग्न । ॐ 388 8 6386880030038688000 80880588808688 &00000 RANK S:003880090805 8 0MINS श्री महेन्द्रकुमार "मस्त"-सामाना उत्तर भारतीय जैन समाज के युवा लेखक, वक्ता, व कवि महेन्द्रकुमार मस्त से शायद ही कोई अपरिचित हो। छोटी उमर में ही आप श्रीसंघ सामाना के प्रधान, महासभा वकिंग कमेटी के सदस्य रह चुके हैं । इस समय भी आलइण्डिया जैन श्वेतांबर तीर्थ समिति हस्तिनापुर के मंत्री हैं । जैन साहित्य में रुचि लेने वाले इस युवक ने प्रायः सारे भारत का भ्र पण किया है, तीर्थयात्राएं की हैं व जैन कार्यकर्तामों से घनिष्ठता स्थापित की है । "वल्लभ अमर कहानी", महेन्द्र भजनमाला" तथा “गीतसुधा-ये तीन पुस्तकें अापके भजनों की छप नुकी हैं । दैनिक हिन्दी पत्रों व जैनपत्रो में आपके लेख गत २५ सालों से छपते रहे हैं। सामाना के परम गुरुभक्त व संस्कारी परिवार में सारगचंद जैन के घर आपका जन्म हुआ था । आपने बी० ए० तक शिक्षा पाई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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