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________________ R ५७२ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म लाला दीनानाथ जैन परम गुरुभक्त, धर्मानुरायी लाला दीनानाथ जी सुपुत्र ला० परमानन्द जी गद्दहिया गोत्री प्रोसवाल का जन्म रामनगर में हुअा था। बाद में वे सपरिवार गुजरांवाला में चले आये। जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी महाराज के प्रति उनके दिल में बड़ी श्रद्धा थी। उनकी अद्भुत सूझ-बूझ व्यवहार कुशलता और सूक्ष्म दृष्टि की सभी तारीफ करते थे। एक बार उनके संपर्क में आने पर उनकी प्रतिभा का प्रभाव दूसरे पर पड़े बिना नहीं रहता था। वे बहुत परिश्रमी थे। भारत विभाजन के बाद वे आगरा पा गए और इंजिनिरिंग उद्योग में लग गये। कुछ वर्षों बाद उन्होंने दिल्ली में अपना स्थायी निवास गृह बना लिया। उन्होंने अपने उद्योग की गुड़गावाँ, कलकत्ता, बम्बई आदि नगरों में ईकाईयां स्थापित की और आर्थिक क्षेत्र में दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति की। वे बड़े दूरदर्शी थे। तीर्थयात्रामों में उनकी बड़ी रुचि थी। दिल्ली में उनका स्वर्गवास हो गया। उनके तीनों पुत्रश्री देवराज, श्री धनराज और श्री सुशील कुमार भी धर्म और समाज सेवा में कभी पीछे नहीं रहे। -:: 000 लाला मकनलाल जी मन्हानी &00008 388000K आप गुजराँवाला निवासी लाला रामेशाह के सुपुत्र थे। आपका जीवन धार्मिक था। प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी को आज्ञा का पालन करते हुए आपने कागड़ा तीर्थ पर जैन धर्मशाला के निर्माण के लिये भूमि खरीद कर श्री जैन श्वेतांबर संघ पंजाब को भेंट की जिस पर भव्य विशाल जैन धर्मशाला का निर्माण श्री काँगड़ा तीर्थ कमेटी ने किया है । आपकी इसी भूमि में श्री जैन श्वेतांबर मंदिर का निर्माण भी हो रहा है। अपने जीवन में अनेक बार धर्म खातों में उदारतापूर्वक दान देते रहे । पाकिस्तान बनने के बाद आप अंबाला चले आये । वहाँ आपका स्वर्गवास हो गया . इस समय आपका परिवार दिल्ली में प्राबाद है। यहाँ के रूपनगर के जैन श्वेतांबर मंदिर में बिजली फिटिंग का सारा खर्चा आपके पुत्र तथा पौत्रों ने करने की उदारता की है। NROEN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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