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सेठ मणिलाल जी डोसी
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सेठ मणिलालजी डोसी आपका जन्म चैत्र वदी चौदस विक्रमी सम्वत् १९७७ तदानुसार १९२० ई० को जोधपुर के महान् धर्मप्रेमी श्री सुखराम जी डोसी के सम्पन्न परिवार में हुआ। अल्पायु में ही आप अपने पूज्य पिताजी के साथ वस्त्र व्यवसाय में लग गये। गुरु महाराज की असीम कृपा, अपनी ईमानदारी, निष्ठा व लगन से शीघ्र ही व्यवसाय के क्षेत्र में प्रापने महत्वपूर्ण सफलता व प्रतिष्ठा अजित की। वस्त्र व्यवसाय के साथ-२ आपने हीरे जवाहरात आदि के जोहर व्यवसाय को भी अपनाया । सौभाग्यवश इस व्यवसाय में आपको भारत के प्रसिद्ध जौहरी श्री सुमतिदास जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुमा। आज आपकी गणना भारत के गिने-चुने जौहरियों में होती है । हीरा, पन्ना और मानक के साथ-साथ आप मनुष्य के भी अच्छे पारखी हैं । १६६५ में आपने मै० डोसी साड़ी पैलेस एण्ड ज्वेलर्स नामक व्यवसायिक संस्था की स्थापना की, जिनका संचालन आपके तीनों सुयोग्य सेठ मणिलालजी डोसी पुत्र श्रीयुत दिनेशकुमार, श्रीयुत महेन्द्र कुमार, श्रीयुत अशोककुमार बड़ी कुशलता के साथ कर
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___आपके परिवार की धार्मिक और संस्कारिक परिवेश की झलक, आपके व्यक्तित्व में पूर्ण रूपेण प्रतिबिम्बित होती है । आपकी मधुर भाषिता और स्पष्ट वादिता ने अापके व्यक्तित्व को इतना सम्मोहक बना दिया है कि जो भी एक बार आपसे मिल लेता है वह आपका अपना हो जाता है। प्रातिथ्य सेवा में तो आपका सानी ही नहीं। आप उदार एवं व्यवहार कुशल होने के साथ-साथ निःस्वार्थ समाज सेवी भी हैं। असहाय, दीन-दुखियों तथा स्वमियों के प्रति तो सहानुभूति प्रापमें कट-कूट कर भरी है। जैनसाधुओं व जैनतीर्थों के प्रति आपके मन में असीम श्रद्धा है। आपकी दानवीरता की चर्चा दिग्-दिगन्त में व्याप्त है। हस्तिनापुर तीर्थ तथा पावापुरी (बिहार) के जीर्णोद्धार में आपकी सेवाएँ इसका ज्वलन्त प्रमाण है । जैन समाज में आप प्राधुनिक भामाशाह के नाम से विख्यात हैं। आपकी निःस्वार्थ समाज सेवा तथा वृति के लिए देहली जैन समाज ने आपको १९७२ में "समाज रत्न" की उपाधि से विभूषित किया। अनेक संस्थाएं भी आपको सम्मानित कर चुकी हैं।
आपके जीवन का परम लक्ष्य व संदेश यह है कि भोजन की जूठन को न छोड़ा जाए, क्योंकि भारत जैसे अभावग्रस्त देश में अन्न अपव्यय एक सामाजिक अपराध तो है ही साथ-साथ नाली व कूड़ों में फेंकी गई अन्न की जूठन से उत्पन्न असंख्य जीवों की हिंसा भी होती है। आपने इस संदेश को पत्र पत्रिकाओं तथा अनथक प्रयासों से जन-जन तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है । एक दिन अवश्य ही प्रापका संदेश भारत की सीमाओं को लाँघता हा विश्व के प्रांगण में प्रभात की सुनहरी धूप की तरह जगमगा उठेगा। मानव कल्याण में सदैव ही आप अद्वितीय भूमिका निभाते रहें।
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