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________________ जैनधर्म की प्राचीनता और लोकमत ३५ स्वयं पर विजय पाना यही एक महान ध्येय है और मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है । हिंसक युद्धों से संसार का कल्याण नहीं होता । यदि किसी ने आज महान परिवर्तन करके दिया है तो वह हिंसा सिद्धान्त ही है । अहिंसा सिद्धान्त की खोज और प्राप्ति संसार की समस्त खोजों श्रौर प्राप्तियों से महान है। मनुष्य का स्वभाव है कि नीचे की ओर जाना । किन्तु जैन तीर्थंकरों ने सर्वप्रथम यह बताया कि अहिंसा का सिद्धान्त मनुष्य को ऊपर उठाता है । (डा० कालीदास नागउपकुलपति कलकत्ता विश्वविद्यालय ) चौबीस तीर्थंकर विवरण नम्बर तीर्थंकर नाम १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ६ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ २० २१ २२ २३ २४ श्री ऋषभदेव | श्री अजितनाथ श्री संभवनाथ श्री अभिनंदननाथ श्री सुमतिनाथ श्री पद्मप्रभु श्री सुपार्श्वनाथ श्री चन्द्रप्रभु श्री सुविधिनाथ श्री शीतलनाथ श्री श्रेयांसनाथ श्री वासुपूज्य श्री विमलनाथ श्री अनन्तनाथ श्री धर्मनाथ श्री शांतिनाथ श्री कुंथुनाथ श्री अरनाथ श्री मल्लिनाथ श्रीमुनि सुव्रतनाथ श्री नमिनाथ श्री अरिष्टनेमि श्री पार्श्वनाथ श्री महावीर जन्म नगर आयुष्य Jain Education International अयोध्या अयोध्या सावत्थी अयोध्या अयोध्या कौशाम्बी वाराणसी चन्द्रपुरी काकन्दी ८४ लाख पूर्व' ७२ लाख पूर्व ६० लाख पूर्व ५० लाख पूर्व ४० लाख पूर्व ३० लाख पूर्व २० लाख पूर्व १० लाख पूर्व २ लाख पूर्व १ लाख पूर्व ८४ लाख वर्ष भद्दिलपुर सिंहपुरी चम्पापुरी कम्पिलपुर अयोध्या रत्नपुरी हस्तिनापुर हस्तिनापुर ६५ हजार वर्ष १० लाख वर्ष १ लाख वर्ष हस्तिनापुर मिथिला राजगृही ८४ हज़ार वर्ष ५५ हज़ार वर्ष ३० हजार वर्ष ७२ लाख बर्ष ६० लाख वर्ष ३० लाख वर्ष १० हजार वर्ष १ हजार वर्ष मथुरा शौरीपुर वाराणसी १०० वर्ष क्षत्रियकुण्ड ७२ वर्ष | छद्मस्थ काल १००० वर्ष १२ वर्ष १४ वर्ष १८ वर्ष २० वर्ष ६ मास ६ मास ३ मास ४ मास ३ मास २ मास १ मास २ मास ३ वर्ष २ वर्ष १ वर्ष १६ वर्ष ३ वर्ष १ दिन-रात ११ मास ६ मास ५४ दिन ८४ दिन १२ ॥ वर्ष परस्पर अन्तर For Private & Personal Use Only | पचास लाख करोड़ सागर " तीस लाख करोड़ सागर दस लाख करोड़ सागर नौ लाख करोड़ सागर नब्वे हज़ार करोड़ सागर नौ हजार करोड़ सागर नौ सौ करोड़ सागरोपम | नब्बे करोड़ सागर नौ करोड़ सागर | एक करोड़ सागर ५४ सागर ३० सागरोपम ६ सागर ४ सागर ३ सागर ॥ पत्योपमः ● पल्योपम १००० करोड़ वर्ष ५४ लाख वर्ष ६ लाख वर्ष ५ लाख वर्ष ८३७५० वर्ष 1. चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वाग, चौरासी लाख पूर्वाग का एक पूर्व अर्थात् ८४०००००X८४०००००= ७०५६०००००००००० सौर वर्षों का एक पूर्वं । ऋषभदेव की आयु चौरासी लाख पूर्व = ७०५६००००००० ०००X८४०००००=५८२७००००००००००००००० सौर वर्ष आयु ऋषभदेव की । 2. दस कोटाकोटी पल्योपम का एक सागरोपम (सागर) । अर्थात् १०X१००००००० X १००००००० १०० ००००००००००००० पल्योपन (पल्य) का एक सागर अथवा सागरोपम । 3. एक योजन लम्बा एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा खड्डा युगलियों के सात दिन के जन्मे हुए बालक के एक-एक बाल (केश) के २०६७१५२ किए हुए अतिसूक्ष ्म म टुकड़ों को ठोस - ठोसकर इस प्रकार भरें कि अग्नि से जलें नहीं, पानी से बहें नहीं, चक्रवर्ती की सेना के ऊपर चलने से दबें नहीं । इस प्रकार के खड्डे में से सौ-सौ वर्ष के बाद एक-एक टुकड़ा निकालें । जितने काल में खड्डा खाली हो यह एक ल्योय 1 २५० वर्ष अन्तिम अर्हत् (तीर्थंकर ) www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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