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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म दीर्घायु तुलना जैनागमों में वर्णित लम्बी आयु के विषय में अधिकतर विद्वानों की यह धारणा है कि यह मात्र अतिशयोक्ति है जो अपने महापुरुषों की महत्ता बतलाने के लिए की गई है। परन्तु पौराणिक ब्राह्मण साहित्य में जो अवतारों की आयु बतलाई है, उसके साथ तुलना करने से ज्ञात होता है कि उनकी भी आयु इसी प्रकार संख्यातीत वर्षों की बतलाई गयी हैं। हम यहां पर मात्र ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिब) की आयु का उल्लेख करके सन्तोष मानेंगे। इस तुलना से आप जान पायेंगे कि इस विषय में प्रार्हतों (जैनों) और बार्हतों (वैदिक ब्राह्मणों) की मान्यता में कितनी समानता है। हम लिख आए हैं कि विश्व में जितनी भी संस्कृतियों ने जन्म लिया उनमें पाहत और बार्हत् सबसे प्राचीन हैं । (१) ब्रह्मा की आयु ब्रह्मा की १०० वर्ष की आयु थी। ये सौ वर्ष कितना लम्बा समय था इसका विवरण इस प्रकार है-वैदिक आर्यों ने काल के चार विभाग किए हैं-- १- सतयुग १७२८००० सौर वर्षों का, २-त्रेतायुग १२६६००० सौर वर्षों का, ३--द्वापर युग ८६४००० सौर वर्षों या और कलियुग ४३२००० सौर वर्षों का। चारों युगों को मिलाकर एक महायुग होता है, इसका समय ४३२००० ० सौर वर्षों का हा । एक हजार महायुगों का ब्रह्मा की प्रायु का एक दिन होता है। अर्थात् ४३२००००००० मौर वर्षों का ब्रह्मा की आयु का एक दिन हुआ । यही एक दिन १४ मन्वन्तरों का होता है। इस एक दिन को एक कल्प भी कहते हैं। एक वर्ष में ३६५.२५ दिन होते हैं। अत: ४३२०००००००४ २७.२५ = १५७७८८००००००० सौर वर्षों का ब्रह्मा का एक वर्ष । तो ब्रह्मा की १०० वर्ष की प्राय १५७७८८०००००००x१००-१५७७८८०००००००० सौर वर्षों की हई। (२) विष्णु की आयु विष्ण की प्राय भी १०० वर्ष की है। इन सौ वर्षों का विवरण इस प्रकार है। ब्रह्मा की एक हजार वर्ष प्रायु विष्णु की एक घड़ी (२४ मिनट) आयु । एक घड़ी एक दिन-रात का १/६० होता है । अतः विष्णु की आयु १५७७८८०००००००००X १०००६० ३६५.२५४ १००= ३४५७६२४०२०००००००००००००००००० सौर वर्षों की है। (३) रुद्र (शिव) की आयु शिव की आयु १०० वर्ष की है। इसका विवरण इस प्रकार है । शिव की प्राय की आधी कला-विष्ण की आयु के १२००००० गुणा । अर्थात् एक अहोरात्र (दिन-रात) का १/१८०० समय होता है। अतः शिव की आयु=१२०००००४ १८००४ ३६५.२५४ ३४५७६२४०२००००००००००००००००० x १०० =२७२८०६४५७६३३८८०००००००००००००००००००००००००००० सौर वर्षों की हुई। (४) रुद्र (शिव) के अर्बुद(१०००००००००) वर्षअक्षर ब्रह्म का समय । (५) मनुस्मृति के अनुसार काल परिमाण के १८ निमेश की १ काष्टा । ३० काष्टों की १ कला । ३० कलाओं का एक महूर्त । ३० महूर्तों का एक अहोरात्र (दिन-रात) होता है । (१) कार्तिक शुक्ला ६ के प्रथम प्रहर में श्रवण नक्षत्र वृद्धि योग में सतयुग का जन्म हुआ । इस पुग में मत्स्य, कच्छप, वराह, नरसिंह ये चार अवतार हुए। (२) वैसाख शुक्ला ३ (अक्षय तृतीया) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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