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________________ ५१४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म की संसारी ताई (माताजी की जेठानी) थी। उपर्युक्त ८ में से नं० एक के सिवाय बाकी सातों ने प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी के समुदाय में श्वेतांबर तपागच्छीय श्रमण-श्रमणियों की दीक्षाएं ग्रहण की हैं। पंन्यास जयविजय तथा उपर्युक्त अन्य पाठों ही पंजाब देश के निवासी खंडेलवाल जाति के श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक धर्मानुयायी समद्ध परिवारों के व्यक्ति हैं। __पन्यास श्री जयविजय जी के दो शिष्य हैं-(१) मुनि नयचन्द्रविजय जी और (२) मुनि कनकविजय जी। (१) नयचन्द्रविजय जी का संसारी नाम लाला विलायतीराम जाति प्रोसवाल (भाबड़ा) गोन नौलखा जीरा (पंजाब) निवासी हैं। आपके पितामह का नाम लाला टेकचन्दजी चौधरी तथा पिता का नाम लाला दीनानाथ जी था। ये लोग जीरा नगर में कपड़े का व्यापार करते थे। माता का नाम पार्वतीदेवी था। विलायतीराम तीन भाई थे। (१) लाला देवीदास (२) लाला विलायतीराम (स्वयं) तथा (३) लाला शादीलाल और तीन बहनें थीं-(१) भागवन्ती, (२) राजवन्ती और (३) प्रसन्नी देवी । दीक्षा लेने से पहले विलायतीराम दिल्ली में सौदागरी के सामान की दलाली करते थे। आपकी दीक्षा ५५ वर्ष की आयु में वि. स. २०२४ मिति मार्गशीर्ष सुदि १० को बड़ौत जिला मेरठ (उत्तर प्रदेश) में अपने भतीजे श्री चिमनलाल तथा इनके तीन बालपुत्रों तथा इन पुत्रों की माता के साथ आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी द्वारा हुई। आपको पं० जयविजय जी का शिष्य बनाया और नाम नयचन्द्रविजय रखा। आप दीक्षा लेने के बाद तपस्या में अधिक रुचि रखते हैं-होशियारपुर के चौमासे में ६१ दिन के उपवास, लुधियाना के चौमासे में ५१ दिन के उपवास, दिल्ली के चौमासे में ५१ दिन के उपवास, बड़ौदा के चौमासे में ४१ दिन के उपवास, इन्दौर के चौमासे में ३१ दिन के उपवास तथा किसी अन्य चौमासे में २१ दिनों के उपवासों की तपस्यायें की हैं । इस समय अपने गुरु के साथ आप पंजाब में विचर रहे हैं। (२) दूसरा शिष्य आपका मुनि कनकविजय है । यह जाति का अरोड़ा, ढूंढिया धर्मानुयायी जगरांवा नगर (पंजाब) का निवासी, प्राचार्य कैलाशसागर जी का बड़ा सगा भाई । इसने वृद्धावस्था में वि. स. २०३४ में होशियारपुर (पंजाब) में दीक्षाग्रहण की और पं. जयविजयजी का शिष्य बना। सामान्य शिक्षित, संसारी नाम वीरचन्द था । गुरु के साथ ही पंजाब में विचर रहा है। तपस्वी मुनि श्री बसन्तविजय जी जैन श्वेतांबर तपागच्छीय आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के शिष्य सरल स्वभावी प्रशांतमूर्ति मनि श्री विचारविजय जी के शिष्य तपस्वी मुनि श्री बसतविजय जी का जन्म वि. स. १९६८ मिति कार्तिक वदि अमावस्या (दीवाली) के दिन ज़ीरा जिला फ़िरोज़पुर (पंजाब) में हुआ। आपके पिता का नाम लाला अवधूमल तथा माता का नाम श्रीमती बचनदेवी था । वंश बीसा ओसवाल (भाबड़ा) गोत्र नौलखा था । इस बालक का नाम माता-पिता ने यशदेव रखा। दीक्षा लेने का कारण-यशदेव चार-पांच वर्ष की आयु में ऐसा बीमार पड़ा कि इसके बचने की कोई आशा ही नहीं रही थी। माता-पिता ने चिकित्सा करने में कोई कमी न रखी, परन्तु सब चिकित्सकों ने हताश होकर कह दिया कि यह बच्चा जीवित नहीं रहेगा रोग असाध्य है । हम लोगों के पास इस रोग का उपचार कोई नहीं है कि जिससे इसे निरोग किया जा सके । माता-पिता ने लाचार होकर चिकित्सा करना छोड़ दिया। इन दिनों आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि अपने मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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