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________________ पन्यास जयविजय जी गणि ५१३ देहांत हो गया । छोटा भाई सरदारीलाल म्यानी अफगानां में ही कपड़े की दुकान करता है । सब प्रकार से सुखी और समृद्ध है । तीनों भाई विवाहित और सपरिवार थे। सबके घर में धार्मिक वातावरण एवं सदाचार पर पूरी निष्ठा है । तीर्थराम का विवाह भी अच्छे जैन परिवार की रूपवती कन्या के साथ हुआ, उससे दो लड़कों और एक लड़की ने जन्म लिया। बड़ा लड़का इस समय अमरीका में उच्चपद पर नौकरी कर रहा है । तीर्थराम ने ३२ वर्ष की आयु में धन-सम्पत्ति तथा भरेपूरे परिवार का त्यागकर प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी से वि. सं. २००३ में जैनसाधु की दीक्षा ग्रहण की। नाम मुनि जयविजय रखा गया और प्राचार्य श्री ने अपना शिष्य बनाया । क्रमशः आप पंन्यास तथा गणि पदों से विभूषित हुए । पंन्यास श्री जयविजय जी गणि उर्दू, हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाम के ज्ञाता हैं, जैन सिद्धान्त के अच्छे विज्ञ हैं । आपकी व्याख्यान शैली अत्यन्त रोचक, मनोरंजक, सरल, दृष्टांतों तथा उदाहरणों से भरपूर होती है । प्रापका स्वभाव मिलनसार, विनम्र, सरल तथा हंसमुख है । आपके परिवार से आठ व्यक्तियों ने दीक्षाएं ली हैं- विवरण इस प्रकार है। (१) मुनि श्री लाभविजय जी - संसारी नाम लाला लब्भुराम, ये आपके संसारी चाचा जी थे । (२) पंन्यास श्री बलवन्तविजय जी गणि जिनका संसारी नाम बनारसीदास था । पिता का नाम लाला ईश्वरदास तथा बड़े भाई का नाम श्री द्वारकादास । दोनों भाइयों ने श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब गुजरांवाला में शिक्षा पाई और विनीत परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। इस समय द्वारकादास अपने परिवार के साथ जालंधर (पंजाब) में रहते हैं । मुनि बलवंतगिजयजी महातपस्वी थे, बालब्रह्मचारी थे और प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के शिष्य थे । आप अधिकतर पालीताणा में सिद्धाचल जी की छत्रछाया में आत्मसाधना में तल्लीन रहे और वहीं आपका देहांत हो गया । आप गणि जयविजय जी के संसारी अवस्था में भानजे थे । ३ – मुनि श्री शांतिविजय जी । जिनका संसारी नाम लाला खुशीराम जी था । श्राप श्री विजय समुद्रसूरि के शिष्य थे । श्रापका स्वर्गवास हो गया है। पंन्यास जयविजयजी के संसारी बहनोई थे । श्रापका अहियापुर - उड़मड़ में जन्म तथा अन्त समय में आपका स्वर्गवास भी वहां हुआ । (४) साध्वी श्री प्रवीन श्री जी जिन का संसारी नाम पुष्पाकुमारी था । यह जयविजयजी की संसारी अवस्था की पुत्री है। (५) साध्वी श्री चिंतामणि श्री जी । संसारी नाम जवन्दीदेवी था । यह पं० जयविजयजी की बहन तथा पं० बलवन्तविजय जी की माता थी। 1 (६) साध्वी श्री चिदानन्द श्री जी, जिनका संसारी नाम तेजकौर था । यह शाँतिविजयजी की संसारावस्था की पत्नी तथा पं० जयविजयजी की संसारी अवस्था की बड़ी बहन थी । (७) साध्वी श्री चित्तरंजन श्री जी । संसारी नाम प्रियदर्शना था । यह मुनि शांतिविजय जी की संसारी अवस्था की पुत्री तथा पं० जयविजय जी की संसारी अवस्था की भानजी थी । (८) साध्वी श्री लाभश्री जी । जिसका संसारी नाम इन्द्रकौर था । यह पं० बलवंतविजयजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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