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आचार्य श्री कैलाशसागर सूरि
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ज्ञान आपने कालेज में ही कर लिया था। साधु अवस्था में तो आपकी विद्वता को चारचांद लग गए । अव आपकी गणना शासनप्रभावकों में होने लगी। सौराष्ट्र, गुजरात, महाराष्ट्र जनपदों में आप विचरण करके जैनधर्म के प्रचार तथा शासनप्रभावना में जुट गए।
योगनिष्ठ बुद्धिसागर सूरि का स्वर्गवास वीजापुर (गुजरात) में हो जाने से उनके पश्चात् शिष्य प्रशिष्यों में प्रभावशाली मुनिराजों का अभाव खटकने लगा। परन्तु वीरप्रसूता पंजाब धरा की जन्मजात प्रदत्त शक्ति और भोज के प्रभाव के कारण आपने इस परम्परा में दीक्षा लेकर उस कमी को पूरा कर दिया। प्राप ज्ञानगंभीर सवि जीव करूं शासन र सिया तथा निरातिचार चारित्र पालन में सदा जागरुक रहते हैं । सीधी, सरल, वैराग्यगभित, ज्ञानपूर्ण, प्रोजस्वी, तलस्पर्शी शैली से प्रवचन द्वारा हजारों लोगों के जीवन का परिवर्तन किया है । धर्मोपदेश के साथ मानवी बुराइयों को जैसे कि जुमा, शराब, मांस आदि सात व्यसनों का त्याग कराकर सैकड़ों अधर्मियों को सदाचारी बनाया है। यदि सच पूछा जाए तो आपकी वाणी संसारी जनों को कल्याण मार्ग में प्रोत्साहित करने वाली है।
आपकी इस योग्यता से प्रभावित होकर श्रीसंघ ने आपको वि० सं० २००४ मार्गशीर्ष वदि १० के दिन पूना में गणिपद, वि० सं० २००५ मार्गशीर्ष सुदि १० को बम्बई में पंन्यास पद तथा विक्रम स० २०११ मार्गशीर्ष सुदि ५ को साणंद (गुजरात) में उपाध्याय पद, वि. स. २०२२ में मार्गशीर्ष वदि ११ को साणंद में प्राचार्य पद प्रदान किया।
आपकी प्रेरणा से गुजरात, सौराष्ट्र के अनेक नगरों-ग्रामों में धर्मशालाएं, ज्ञानशालाएं, पौषध शालाएं (उपाश्रय) जैन मंदिरों तथा अनेक धर्मस्थानों को आपके भक्त श्रावक-श्राविकाओं ने निर्माण कराया है। सैकड़ों जिनप्रतिमाओं की अंजनशलाकाएं और प्रतिष्ठाएं भी आपने कराई है।
इस समय आपके शिष्य प्रशिष्यों की संख्या ३० से अधिक है। उनमें कई तपस्वी, विद्वान तथा प्रभावक भी हैं।
महसाना (गुजरात) में प्रापने महाविदेह क्षेत्र में विद्यमान (विहरमाण) बीस तीर्थंकरों में से एक तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी के बृहद् जैनमंदिर का निर्माण कराकर नवीन जैनतीर्थ की स्थापना की है । इनमें मूलनायक के रूप में श्री सीमंधर स्वामी की बहुत बड़ी प्रतिमा पद्मासनासीन स्थापित कर उसकी अंजनशलाका और प्रतिष्ठा की है । यह प्रतिमा १४५ इंच ऊंची और लगभग २३ टन वजन की संगमरमर सफेद पाषाण की बनाई गई है। यह मंदिर खूब ऊंची जगधी वाला और १०० फुट ऊंचे शिखर से विभूषित है ।
जिनालय के साथ ६५ कमरों वाली आधुनिक ढंग की सब प्रकार की सुविधाओं वाली धर्मशाला, सेनिटोरियम, जैन भोजनशाला, व्याख्यान खंड, अशक्तजनों केलिए प्राश्रम, पाठशाला आदि का भी निर्माण कराया गया है।
आचार्य कैलाशसागर जी के बड़े भाई वीरचन्द ने अपनी वृद्धावस्था में वि० सं० २०३५ को होशियारपुर (पंजाब) में आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के शिष्य पंन्यास जयविजय जी गणि से दीक्षा ग्रहण की है । दीक्षा लेने के बाद आपका नाम मुनि कनकविजय रखा गया है। इस समय पंजाब में विराज रहे हैं।
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