SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 547
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०० मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म जन्मभूमि जम्मू की तरफ विहार चतुर्मास के बाद प्राप यहां से विहार कर काश्मीर की राजधानी जम्मूनगर में पधारे। यह आपकी जन्मभूमि थी । आपके दो शिष्य मुनि समुद्रविजय तथा मुनि सागरविजय भी सदा आपके साथ में थे । इस समय गुजरांवाला से पंन्यास विद्याविजय जी, मुनि विचारविजय जी भी यहां पधार गये थे । जम्मू के श्रावक लाला सांईंदास तथा लाला वधावामल ने नवपद के उप की समाप्ति के उपलक्ष्य में उपधान किया। इस अवसर पर पंजाब के लगभग सात सौ प्राठ सौ श्रावक-श्राविकार्य ये थे । प्रभु की रथयात्रा का जलुस बड़े ठाठ के साथ निकाला गया । इस उद्यापन के अवसर पर आपने उपस्थित नर-नरियों के सामने प्रतिज्ञा की कि जब तक पंजाब में जैन गुरुकुल की स्थापना नहीं होगी तब तक के लिए मैं आज से दूध, दही, घी, तेल, गुड़ तथा तली हुई ( कढाही ) वस्तु का त्याग करके सब विगयों को त्याग करता हूँ । अर्थात् उपर्युक्त छह विगयों के खाने-पीने का त्याग करता हूँ । तथा श्राज से अपने आहार पानी में मात्र पांच द्रव्य ही ग्रहण करूंगा । अन्य सब वस्तुओं के श्राहार-पानी का मेरा त्याग रहेगा । एकता के लिए श्राह्नान जम्मू के स्थानकवासी समाज के नेता लाला विशनदास जी दीवान तथा लाला काशीराम जी आपके पास आये | आपका दर्शन करने के बाद उन्होंने आपसे कहा - आज जब हिन्दू-मुसलमान एकता हो रही है, आर्या समाजी और सनातनी अब अपने मतभेदों को छोड़कर मिल रहे हैं तो जैनों के श्वेतांबर और स्थानकमार्गी दोनों समाजों में भी एकता अवश्य होनी चाहिए । आपने कहा----"यदि आप लोग सच्चे हृदय से मेल-मिलाप चाहते हैं तो इसके लिए मैं पहल करने को तैयार हूँ | देखो ! कल आप के साधु श्री मोतीलाल जी स्यालकोट से यहाँ पधारने वाले हैं । मैं अपने सत्र श्रावक-श्राविकाओं और अपने सब साधुओं के साथ उनको लेने से लिए सामने जाने को तैयार हूं। हमारे श्रावक उनका व्याख्यान भी सुनने आवेंगे, जब आप के साधु यहां से विहार करेंगे तो छोड़ने भी जावेंगे और आहार- पानी के लिए भी विनती करते रहेंगे। इस बात के लिए में उन्हें प्रेरणा भी करूंगा । इसी प्रकार जब कोई हमारे साधु-साध्वी भी यहां प्रावें तब आपके साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविकाएं उनके साथ भी वैसा ही सद्व्यवहार करें । बस । अब आप भी इसी प्रकार अपने भाइयों को सूचना दे देवें कि जब कोई संवेगी ( श्वेतांबरों - पुजेरों) का साधु-साध्वी आवे तब उन्हें लेने पहुंचाने, व्याख्यान वाणी सुनने जावें श्रीर जिनमंदिर में आकर प्रभुदर्शन भी करें। यदि आप लोगों की इच्छा हो तो में आप के स्थानक में आकर भी आपको धर्मोपदेश सुनाने को तैयार हूँ । खासकर आप लोगों पर तो मेरा विशेष हक़ है। आप की इस स्पष्ट घोषणा को सुनकर वे दोनों महाशय एकदम मौन हो गये। कुछ देर सोचने के बाद बोले कि ऐसा होना बड़ा कठिन है । हमारे साधु-महात्मा तो आपके इन विचारों से कदापि सहमत न होंगे। ऐसा कहकर वे उठकर चले गये । कुछ दिन यहां स्थिरता के बाद आप स्यालकोट में पधारे। यहां स्थानकमार्गियों के लगभग पांच सौ घर थे । श्वेतांबरों के तो मात्र चार-पांच परिवार थे और वे भी अन्य नगरों से यहां श्राकर बसे थे । यहां पधार जाने पर लाला टेकचन्द भावड़ा गद्दहिया गोत्रीय स्थानकवासी गृहस्थ जो यहां की कांग्रेस के सेक्रेटरी थे, वह कांग्रेस की तरफ से आपका पब्लिक व्याख्यान रामतलाई के मैदान में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy