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प्रादर्शोपाध्याय सोहन विजय जी
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प्रतिदिन आते हैं। उसका व्याख्यान निरा पोलिटिकल होता है। आप को अवश्य उधर ध्यान देना चाहिए इत्यादि। फिर क्या था, इस रिपोर्ट के मिलते ही यहां के थानेदार ने गुप्तचर विभाग (खुफ़िया पुलीस-सी. आई. डी.) के एक व्यक्ति को व्याख्यान की डायरी नोट करने के लिए भेज दियो । वह लगातार आठ दिन व्याख्यान में आता रहा किन्तु यहां तो केवल धार्मिक उपदेश था। धर्म का आचरण करने, सच्चरित्र बनने, धर्म सम्प्रदायों की वाड़ाबंदियों से ऊपर उठकर परस्पर प्रेम भाव रखने, और प्रत्येक प्राणी (जीव) को अपनी आत्मा के समान समझने, मांस-मदिरा प्रादि सात कुव्यसनों को छोड़ने आदि पुण्यकर्मों का ही प्रतिदिन उपदेश दिया जाता था।
आप के उपदेश का उस गुप्तचर के हृदय पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा । एक दिन उससे न रहा गया। वह सभा में उठकर खड़ा हो गया और हाथ जोड़कर कहने लगा “महाराज ! धन्य है आप को और धन्य है आपकी वाणी को। आपके उपदेशामृत का पान करते हुए मेरा हृदय गद्-गद् हो उठता है । परन्तु क्या करूं, इस पापी पेट की खातिर मैं माजकल खुफ़िया पुलीस में काम कर रहा हूं। आप कृपा करके मेरे जैसे अधम का भी उद्धार करें । मैं आया तो करता हूं आप की खुफ़िया तौर पर रिपोर्ट लिखने के लिए, क्योंकि यहाँ के किसी ने थाने में यह खबर भेजी थी कि यहां पर लोगों को राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उकसाया जाता है । मगर मैंने यहां आकर आप की वाणी से आज पाठ दिनों से जो कुछ सुना है उससे तो मैं उस व्यक्ति पर लानत दिए बिना नहीं रह सकता। पर इस बात की भी मुझे प्रसन्नता है कि इस रिपोर्ट लेने के बहाने से आकर मुझे आपके उपदेशामृत पान करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है ।
__ थानेदार पर उपदेश का प्रभाव सनखतरा स्यालकोट जिले में एक परगना था। एक दिन जिला स्यालकोट के थानेदार लाला लेखराज जी (क्षत्रिय) प्राप के पास आये। उनके साथ सनखतरे की नगरपालिका के प्रधान लाला अमीचन्द जी खंडेलवाल जैन भी थे। थानेदार साहब इस इरादे से पाए थे कि देखें-यह साधु कोई पोलिटिकल आदमी है या कोई सच्चा महात्मा है ? आपके साथ थानेदार साहब ने वार्तालाप शुरू की । परस्पर की बातचीत का थानेदार पर आप का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसने अाजन्म मांसाहार का त्याग कर दिया और प्राप के चरणों में नतमस्तक होकर अपनी प्रतिज्ञा में दृढ़ रहने का आशीर्वाद मांगा। इसके साथ ही लाला अमीचन्द जी ने भी प्राजन्म चमड़े का जूता न पहनने की अटल प्रतिज्ञा की।
विशेष उल्लेखनीय बात इस चतुर्मास में सनखतरे में मुसलमानों के यहां एक पीर साहब (धर्मगुरु) आये । वे अपने अनेक शिष्यों के साथ आपके पास भी पाये। अापके सारगर्भित उपदेश को सुनकर उसने विदेशी वस्त्रों, विदेशी खांड और मांस भक्षण के त्याग करने की भावना प्रगट की और कहा- "मैं खुदा को हाज़िर-नाज़िर जानकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि आपकी इस नसीहत का ज़रूर पालन करूंगा।" आपके यहां के इस चतुर्मास में अनेकों ने मांस-मदिरा, विदेशी खांड, कीड़ों से बना हुआ रेशम तथा विदेशी वस्त्रों का त्याग किया। इन सबके मन में ठस गया था कि दया रहित धर्म धर्म नहीं है। इस प्रकार वि. सं. १६७६ का सनखतरे का आपका चतुर्मास सानन्द सफल समाप्त हुआ।
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