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________________ ४६८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म ३. भादों वदी १२ पर्यंषणा पर्व का प्रथम दिन। ४. भादों सुदि ४ पर्युषणा पर्व का अन्तिम-संवत्सरी पर्व का दिन । यहां के हिन्दुओं, सिक्खों, जैनों, मुसलमानों, कसाइयों ने आपको मानपत्र दिये ।। जब आपने सनखतरा से विहार किया तब सब नगरवासियों ने प्राप श्री को यहीं चतुर्मास करने की विनती की। लोगों की प्रार्थना को सुन कर आपने कहा कि मैं अभी तो कुछ कह नहीं सकता, जैसी गुरुमहाराज की आज्ञा होगी वैसा ही होगा। सनखतरा से विहार कर आप नारोवाल पधारे । जेठ सुदि ८ को विजयानन्द सूरि का स्वर्गवास दिन बड़ी धूम-धाम से मनाया। इस अवसर पर पंजाब से लगभग १५०० नर-नारी आये थे। सनखतरा के सब कौमों के लोगों ने मिलकर आपको अपने यहां चतुर्मास करने की पुनः पुरजोर विनती की। यहां पर भी एक विशेष घटना का उल्लेख बड़ी दिलचस्पी दिलाने वाला करते हैं । एक अकाली सिख के यहां विवाह के अवसर पर उसने मेहमानों के खाने के लिए कुछ बकरे झटकाने के लिए बांध रखे थे। वह अकाली महोदय आपके व्याख्यान में प्रतिदिन आने लगा। उसके हृदय पर आपके व्याख्यान का ऐसा जादू का प्रभाव पड़ा कि उसने अपनी जाति के लोगों को कह दिया कि "मेरे हृदय में अब इतनी कठोरता नहीं रही कि जिससे मैं इन निरपराधी जीवों का केवल जीभ के स्वाद के लिए वध कर डालूं । यह काम अब मुझसे हरगिज़ न होगा? बस फिर क्या था उन बेचारे मूक प्राणियों को अभयदान मिल गया। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में जहां-जहां भी आप विचरे वहां के अनेक लोगों ने विदेशी खांड, विदेशी व रेशमी वस्त्रों का त्याग किया तथा शुद्ध स्वदेशी वस्त्रों को पहनने का नियम लिया। सैकड़ों ने प्राजीवन मदिरा-मांस का भी त्याग किया। सनखतरे में चतुर्मास गुरुदेव विजयवल्लभ सूरि उस समय अम्बाला शहर में थे। सनखतरे के हिन्दू, मुसलमान, कसाई, सिख, जैन आदि सब जातियों, समाजों, धर्मसम्प्रदायों के सज्जन यहां आये और गुरुमहाराज से आपके लिए सनखतरा में चतुर्मास करने की आज्ञा ले आये । नारोवाल से विहार कर किला सोभासिंह पधारे। यहां पर लाला सदानन्द प्रोसवाल जैन द्वारा निर्मित देवविमान जैसे सुन्दर जैन श्वेतांबर मंदिर का दर्शन किया। यहां पर स्यालकोट निवासी स्थानकवासी लाला पन्नालाल जी प्रोसवाल जैन के उद्योग से आपका एक पब्लिक व्याख्यान हुआ, जिसका जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा। यहां से विहार कर आप पुनः सनखतरा पधारे । यहां की सारी जनता ने आप का शानदार स्वागत किया। चतुर्मास कराने की अपनी भावना की सफलता के लिए यहां की जनता फूली नहीं समाती थी। आपके व्याख्यानों की धूम मच गई थी। आस-पास के गांवों के लोग भी प्रतिदिन कई मील पैदल चलकर सनखतरा में आपका व्याख्यान सुनने आते थे । आपके व्याख्यानों से यहां की जनता को बहुत लाभ पहुंचा। शरारतबाजी किन्तु विघ्न संतोषी लोग भी बीच में ही होते हैं । किसी मनचले व्यक्ति ने वहां के थानेदार को खबर दी कि सनखतरे में एक जैनसाधु ऐसा पाया है जिसके व्याख्यान में हजारों स्त्री-पुरुष 1. कसाइयों और मुसलमानों ने उर्दु भाषा में प्रापको प्रतिज्ञापन-मानपत्र दिये थे उनके फोटों यहां दिये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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