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________________ प्रादर्शोपाध्याय सोहनविजय जी उन्नत दशा प्राप्त नहीं कर सकता । इस से आप को बहुत चिंता हुई और अपने मन में इन्हें सुधारने का दृढ़ संकल्प किया । इसी भावना को लेकर भाप ने वि० सं० १९७८ जेठ सुदि ८ के दिन स्वर्गस्थ आचार्य श्री विजयानन्द सूरि की स्वर्गारोहण तिथि के महोत्सव पर सारे पंजाब से गुजरांवाला में पधारे हुए श्रावक समुदाय को संगठित रूप से कुरीतियों को मिटाने के लिये आह्वान किया । उसी समय यहाँ पर सकल पंजाब जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के संगठन रूप श्राप श्री द्वारा “श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब' की स्थापना की गई। इसी अवसर पर इसका प्रथम अधिवेशन गुजरांवाला में लाला मोतीलाल जी गद्दहिया - जोहरी ( बुकसेलर ) लाहौर वालों की अध्यक्षता में हुआ । अनेक प्रकार के कुरीति निवारक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किये गये, तथा एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यं यह हुआ कि पंजाब में ओसवाल और खंडेलवाल, दसा और बीसा बिरादरियों (जैन समाजों) में परस्पर बेटी व्यवहार (विवाह-शादी ) करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित करके उसी समय दोनों समाजों में परस्पर बेटे-बेटियों की सगाई की सकल संघ के समक्ष रसम करके इस प्रस्ताव को कार्यान्वित कर दिया । इन दोनों समाजों में पहले रोटी व्यवहार तो था पर विवाह शादी नहीं होते थे । जो इस समय चालू कर दिये गये । चतुर्मास समाप्त होने के बाद आप आदमपुर ( द्वाबा ) में पधारे। पूज्य गुरुदेव श्री वल्लभविजय जी, पंन्यास ललितविजय जी, पंन्यास विद्याविजय जी, मुनि श्री विचार विजय जी आदि मुनि समुदाय के साथ बीकानेर से विहार कर १२, १३ वर्षों के बाद पंजाब पधारे । प्राप भी प्रपने साथी मुनियों के साथ गुरुदेव के दर्शन कर कृत्यकृत हो गये और गुरुदेव के साथ ही पंजाब में सर्वप्रथम होशियारपुर में प्रवेश किया। कुछ समय गुरुचरणों में रहकर गुरुदेव की प्राज्ञा लेकर अपनी जन्मभूमि जम्मू की तरफ विहार किया । विहार करते हुए आप सनखतरा पहुंचे । यहाँ पर आप के व्याख्यान में कई मील की दूरी से चल कर सनखतरा के आस-पास के गाँवों से हिन्दू, सिख, मुसलमान, जैन प्रादि जनता भी प्राती । श्राप का व्याख्यान इतना रोचक और हृदयग्राही होता था कि सनखतरा जैन उपाश्रय के हाल में लोगों को जगह सकड़ी पड़ जाती थी । यहाँ के श्री मंदिर जी में स्व० प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि के चरणपट्ट की स्थापना आप जेठ सुदि १५ के दिन की । आप के दयामय उपदेश से प्रभावित होकर “कसाइयों के नेता मियां फज़लउद्दीन ने " अपने कसाई के घंघे का ही त्याग कर दिया। सभा के समक्ष की हुई इस पुण्य प्रतिज्ञा का लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। यहाँ के अन्य सब कसाइयों ने भी जो सब मुसलमान ही थे, मिल कर प्रतिज्ञा की कि वर्ष भर में चार दिन बिना कुछ बदले में लेने की भावना पूर्वक जब तक सनखत्तरा नगर कायम रहे तब तक सब दुकानें बन्द रखेंगे श्रौर जीवदया का पालन करेंगे । इस प्रतिज्ञा को लिखकर सब ने अपने हस्ताक्षरों सहित श्राप श्री को अपना प्रतिज्ञा पत्र अर्पण किया । वर्ष भर में जिन चार दिनों में सनखतरा के कसाइयों ने दुकानें बन्द रखने की प्रतिज्ञा की थीवे चार दिन ये हैं --- ४६७ १. आचार्य श्री विजयानन्द सूरि ( श्रात्माराम ) जी की स्वर्गवास तिथि जेठ सुदि ८ ! २. कार्तिक सुदि पूर्णमाशी का दिन ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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